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________________ [ १५५ ] ( २५ ) तथा परतापचंदजी की जारजायां सदपरिवार सहोत की मुरतीयां स्थापित कीनी सं॥ रए४५ मिती मिगसर सुद र धार बुध द ॥ सगतमल जेठ. मसाणी बाफले का सुनं (२६) उहा ॥ अष्ट कर्म वन दाह के ॥ जये सिद्ध जिनचंद ॥ ता सम जो श्राप्पा [गणे ॥ ताकुं वंदे चंद ॥ १॥ कर्मरोग ओषध सजी ग्यान सुधारस वृष्टि ॥ सिव सुष अमृत बेलमा (२७) जय जय सम्यग् दृष्टि ॥ २॥ एहिज सदगुरु सीष बै॥ एहिज शिवपुर माग लेज्यो निज ग्यांनादि गुण ॥ करजो परगुण त्याग ॥ ३॥ जेद ग्यांन श्रावण जयो ॥ समर(२७) स निरमल नीर ॥ अंतर धोधी श्रातमा ॥ धोवै निजगुण चीर ॥ ४ ॥ कर उष अंगुरी नैन पुष ॥ तन कुष सहज समांन ॥ सिष्यो जात हे कोन सुं॥ सठ जानत थासांन ॥ ५ ॥ (ए) ॥ श्रीः ॥ ॥ श्री श्री श्री ॥ ॥ श्री ॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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