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________________ [ १२४ ] [2499 | ॥ संवत् १९९०१ रा वर्षे शाके १७६६ । प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे आषाढमासे शुल पक्ष सप्तम्यतिथौ भृगुवासरे महाराजाधिराज महारामुखजी श्रीगजसिंहजी विजय. राज्ये प्रधानजहारक श्रीजिनचंद्रसूरि वृहत् शिष्य पं० जीतरंगगणि पाडुका कारापितं श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं श्री जिन महेंद्रसूरिजिः ॥ पटसाल में । [ 2500] (१) ॥ संवत् १६७४ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ५ शुक्रवारे श्रीजेसलमेरो श्रीवृइत्( 2 ) खरतरगाधीश सवाई युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिया के श्रीधर्मनिधानो ( ३ ) पाध्याये | गणधर गोत्रे । हरष पुत्र सा० तिलोक साकेत पुत्र राजसा घिरसा जामसा ( ४ ) द तेन प्रतिष्ठा कारिता | विनेयपंडित धर्मकीर्त्तिगण वंदते गुरुवादानां श्री । ( ५ ) प्रमुख सुखसागरगणि पं० समयकीर्त्तिगण पं० सदारंगमुनि प्रमुखाः वंदते ( ६ ) पं० उदयसंघ लि० [ 2501 ] 'i' ( १ ) ॥ श्री सर्वज्ञाय नमः ॥ ( २ ) ॥ स्वस्ति श्रीर्जयो मंगल ज्युदयश्च । श्रीमन्महाराजाधिराज महाराज | ( ३ ) श्रीविक्रमादित्यज्यात् संवत् १७६९ वर्षे श्रीशालिवाहन कृ. * यह लेख भीत पर है। + यह लेख दक्षिणमुखो परसाल में भीत पर लगा हुआ है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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