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________________ [१३] [2498] (१) ॥ ॐ ॥ संवत् १६७७ फाल्गुण सित ५ दिने । श्रीजेसलमेरु महा(५) दुर्गे ॥ महाराजाधिराज महाराज महाराजख श्रीकल्याणदास (३) जीविजविराज्ये ॥ कुमार श्रीमनोहरदासजी जाग्रयौवराज्ये । (४) सकस श्रीजैन दर्शन रक्षाकर युगप्रधान श्रीजिनचं सूरिपप्र. (५) नाकर श्रीजाहंगीर प्रातिसाहि श्रोसलेम साहि प्रदत्त युगप्रधान वि. (६) रुदधर श्रीजिनसिंहसूरिराजानां नूपतिवेशः कारितः श्रीजेसन(७) मेरुवास्तव्य सकस श्रीखरतरगलीय श्रीसंघेन । प्रतिष्ठितश्च । यु. (0) गप्रधान श्रीजिनसिंहसू रिपट्टासंकार । श्रीलोजपुरपत्तन मण्डन (ए) सहस्रफणामणि चिंतामणिपार्श्वनाथ श्रीशत्रुजय मौलश्रृंगमौली. (१०) य मानाष्टमोझार प्रतिष्ठाकार । श्रीताणवडनगर प्रवर श्रीशांतितीर्थक(११) र प्रतिष्ठा वसरप्रसग्लो सूरिमंत्र स्मरण प्रकटित पे(पा)यूषयूषवर्षि श्री. पार्श्वबिंबा(१२) वलोकन जनित जगजन चमत्कार । यवनराज्य मध्य विदित श्रीमदतट ( १३) प्रकट मम्माणीमय जिनालय प्रथाम] श्रीशांतिनाथ प्रभृति प्रतिमा प्रतिष्ठान (१४) समधिष्ठान विधान लब्ध प्रधानातिशय मुंनार। जादिष्टदेव सान्नि. (१५) ध्यविहित पंचपीराद्यनेक यवनदेवाधिष्ठान पुर्गम सिन्धु देश(१६) विहार । बोहित्यवंशमुक्ताप्रकार । सा० धर्मसी घुरखदे कुमार। मंड(१७) ल जट्टारक वृंददारक पुरंदरावतार श्रीजिनराजसूरिसूरिराज्येः॥ * यह लेख वहां के दूसरे स्तंभ पर है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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