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________________ [११] चौवीसी पर। [2458] सं० १५१० [६० ज्ये० सु० ३ गुरौ । श्रीसिद्धपुर वास्तव्य ओसवालझातीय AR, सहदे सुत सा सोना लाए गोरी पुत्र सा साधारण सधु घातृ सा देपासेन जार्या करमी सुत श्रीवछ श्रीचं प्रमुख कुटुंषसहितेन स्वश्रेयसे श्रीविमलनाथर्विवं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीवृहत्तपाप जहा श्रीरस्नसिंहसूरिलिः ॥ शुनं । 00000000000 सेठ केशरीमलजी का देरासर । ( इंदौरबालों की हवेली) शिलालेख। [24501 ॥ श्री गुरवे नमः ॥ संवत् १७०७ शाके १७७५ नाइवा सु ७ गुरुवारे श्रीदेरासर. जी को जानत पिता घर सिंघवी प्रतापचंद हनतराम जेठमल नथमल सागरमल शादिमल कारापितं ॥ मूर्सियों पर। [2480 ] * सं० १९०१ वर्षे पौण् सु० १५ गुरौ पुष्ये श्रीपार्श्वजिनवियं वाफण श्री जोरावरम * यह लेख चांदी की सफण मूलनायकजी की मूर्ति पर खुदा हुआ है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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