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________________ [१५] ह्रींकार यंत्र पर। [2137] ॥ संवत् १५५० वर्षे धपलक वास्तव्य जावसी रमादे सुत कान्हा नार्या नाई पुत्रो... श्रीसिद्धचक्रपट्टः कारितः॥ प्राचार्य के मूर्ति पर । [2138] ॐ संवत् १४९३ वर्षे फाल्गुण वदि १ दिने श्रीसागरचंदाचार्यमूर्ति प्रतिधितं श्रीखरतरगछे श्रीजिन नमसूरिनिः ऊकेशवंशे धु... गोत्रे सा० ...... पुत्र सा राखी ॥ श्रीसंभवनाथजी का मंदिर। प्रशस्ति। [2180]. (१) ॥ ॐ ॥ अह ॥ स्वस्ति श्रीस्तंजनपार्श्वनाथपादकल्पद्रुमेन्यः ॥ प्रत्यक्षः कल्पवृक्ष स्त्रिजगदधिपतिः पार्श्वनाथो जिनेंः श्रीसंघ स्येप्सितानि प्रथयतु स सदा शकचक्रा (२) जिवंद्यः । प्रोत्सर्पति प्रकामातिशयकिशलया मंगलश्रीफलाढ्याः स्फूर्ज:आर्थ वयो यदनुपमतमध्यानशीष श्रयंत्यः ॥ १॥ श्रीशांतितीर्थकरवासरेश्वरः सुप्रा ___ * यह मंदिर की प्रशस्ति पीले पाषाण में ख़ुदी हुई है। यह भी गद्यपद्यमय ३५ पंक्तियों का एक बड़ा लेख है। इसकी लम्बाई २ फुट ४॥ श्च और चौड़ाई १ फुट ७ इञ्च है। यह भण्डारकर साहेब के १६०४-५ और १९०५-६ के रिपोर्ट के पृ०६६ नं० ५२ में प्रथम प्रकाशित हुआ था, परन्तु सम्पूर्ण नहीं था। G.0. S. No. 21 के परिशिष्ठ नं०३ में सम्पूर्ण छपा है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009680
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
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