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________________ (१४) [1648] सं० १५७५ वर्षे फाप व०४ दिने प्राण साण आल्हा नार्या आम्हणदे पुत्र सा विसा. केन ना० विहणदे पुत्रीपुत्र जयवंतप्रमुखयुतेन श्री सं नवनाथ विंबं का प्र० तपा गछे श्री जयकल्याण सूरि निः। धातु की मूर्ति पर। [1644] सं० १७९६ फाण व ५ श्री पार्श्वनाथ बिवं प्रतिष्ठितं श्री जिनमहें सूरिणा । फोग गो सेवाराम । धातु के यंत्र पर। [1645] श्री । संवत् १९०५ श्रासु०३ श्री सिद्धचक्र यंत्रं का गांधी गुलाबचंप्रस्य नायाँ कली नाम्ना प्र० श्री जिनमहेश सूरिणा श्री बृहत् खरतर गछे। [1646 ] सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ प्रवर्त्तमाने माघ शुक्ल द्वितीया तिथौ श्री सिद्धचक्र यंत्रं प्र० ज० श्री महेश सूरिनिः का० गो नाहटा जैसवाल क्षमणदास तद् नार्या मुन्नि विवि तत्पुत्र हजारीमल श्रेयोर्थमानंदपुरे। पाषाण के चरण पर। [1847] ॥ सं० १७७७ रा धराकायां पाठक हीरधर्मोपदेशेन जयपुर वास्तव्य ओसवाल सेठ हुकुमचंदजेन उदयचंदेन अयोध्यायां श्री मरुदेव १ विजया सिद्धार्थी ४ सुमंगला ५ सुयशा १५ गर्जरत्नानां परमेष्ठिना चरणन्यासाः कारिताः प्रम श्री जिनहर्ष सूरिणा। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009679
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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