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________________ ( १६६ ) नस्य । विषम समाभंग सारंगपुर नागपुर गागरण नराणका अजयमेरु मंडोर मंडलकर बुदी खाटू चाट सुजानादि नानादुर्ग लीलामात्र ग्रहण प्रमाणित जित काशित्वाभिमानस्य। निज भुजोर्जित समुपार्जितानेक अद्र गजेन्द्रस्य। म्लेच्छ महीपाल व्याल चक्रवाल विदलन विहंगमेंद्रस्य। प्रचंड दोदंड खंडिताभिनिवेश नाना देश नरेश माल माला लालित पादारावंदस्य। अस्खलित ललित लक्ष्मी विलास गोविंदस्य । कुनय गहन दहन दवानलायमान प्रताप व्याप पलायमान सकल बलूस प्रतिकूल दमाप श्वापद वदस्य। प्रवल पराक्रमाकांत दिल्लिमंडल गूर्जरत्रा सुरत्राण दत्तासपत्त प्रथित हिन्दु सुरत्राण विरुदस्य सुवर्ण सत्रागारस्य षड्दर्शन धर्माधारस्य चतुरंगवाहिनी वाहिनी पारावारस्य कीर्त्तिधर्म प्रजापालन सत्रादि गुण क्रियमान श्रीराम युधिष्ठिरादि मरेश्वरानुकारस्य राणा श्री कुभकर्ण साव:पतिसार्वभौमस्य ४१ विजयमान राज्ये तस्य प्रासद पात्रेण विनय विवेक धैर्योदार्य शुभ कर्म निर्मल शीलाद्यद्भुत गुणमणिमया भरण मासुर गात्रण श्री मदहम्मद सुरत्राण दत्त फुरमाण साधु श्रीगुणराज संघ पति साहचर्य कृताश्चर्यकारि देवालयाडंबर पुरःसर श्री शत्रुजयादि तीर्थ यात्रेण । अजा हरी पिंडर वाटक सालेरादि बहुस्थान नवीन जैन विहार जीर्णोद्वार पद स्थापना विषम समय सत्रागार नाना प्रकार परोपकार श्री संघ सत्काराद्य गण्य पुण्य महार्य क्रयाणक पूर्यमाण भवार्णव तारण क्षम मनुष्य जन्म यान पात्रेण प्राग्वाट वंशावतंस स० सागर (मांगण ) सुत स० कुरपाल प्रा० कामलदे पुत्र परमार्हत घरणाकेन ज्येष्ठ भातृ सं० रत्ना भा. रत्नादे पुत्र सं० लाषा म(स)जा सोना सालिग स्व मा० स० धारल दे पुत्र जाज्ञा जावडानि प्रवर्द्धमान संतान युतेन राणपुर नगरे राणा श्री कुभकर्ण नरेन्द्रण स्वनाम्ना निवेशिते तदीय सुप्रसादादेशसस्त्र लोक्यदीपकाभिधानः श्री चतुर्मुख युगादीश्वर विहार कारितः प्रतिष्ठितः श्रीवहत्तपा गच्छे श्रीजगच्चंद्र सूरि श्रीदेवेंद्र सूरि संताने श्रीमत् श्रीदेवसुन्दर सूरि पह प्रभाकर परम गुरु सुविहित पुरंदर गच्छाधिराज श्रीसोमसुन्दर सूरिभिः ॥ कृतमिदंच सूत्रधार देपाकस्य अयं च श्रीचतुर्मुख विहार: आचंद्रार्क नंदाताद् ॥ शुभं भवतु ॥
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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