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________________ (१६५) आलोषे प्रतिमा विधि मया कुंवर स्वहस्ते स्थापितं प्रतिष्टितं च श्रो वृहत खरसर गच्छे भ०। यं । जु । श्री जिन सौभाग्य सूरि जी विजै राज्ये पं० देवदत्त जी तत् शि० पं० हीरा चंद्रेण प्रतिष्ठितं च ॥ श्री॥ रैनपूर तीर्थ । मारवाड़के पंचतीर्थी में रैनपूर तीर्थ नलिनीगुल्म विमानाकार तेमंजिला अगणित स्तम्भोंसे भरा हुआ त्रिलोक्य दीपक नामक विशाल मंदिरके कारण जगत्प्रसिद्ध है। “आबुकी कोरणी रैन पूराकी मांडनी" देखने ही योग्य है। मंदिरकी प्रशस्ति । ( 700 ) स्वस्ति श्री चतुर्मुख जिन युगादीश्वराय नमः ॥ श्रीमद्विक्रमसः ११६६ संख्य वर्षे श्री मेदपाट राजाधिराज श्री वप्प १ श्री गुहिल २ मोज ३ शील ? कालसोज ५ अर्त भर ६ सिंह ७ सहायक ८ राज्ञो सुत युसस्व सुवर्णतुला तोलक श्रीखुम्माण ६ श्रीमदल्लट १० नरवाहन ११ शक्तिकुमार १२ शुचिवर्म १३ कीर्तिवर्म १४ जोगराज १५ वैरट १६ वंशपाल १७ बैरिसिंह १८ वीरसिंह १६ श्री अरिसिंह २० चोड़सिंह २१ विक्रमसिह २२ रणसिंह २३ क्षेमसिंह २४ सामंतसिंह २५ कुमारसिंह २६ मथनसिंह २७ पद्मसिंह २८ जैत्रसिंह २९ तेजस्विसिह ३० समरसिंह ३१ चाहूमान श्रीकोतक नृप श्रीअल्लावदीन सुरत्राण जैत्र वप्प वंश्य श्री भुवन सिह ३२ सुत श्रीजय सिंह ३३ मालवेश गोगादेव जैत्र श्री लक्ष्मसिंह ३४ पुत्र अजयसिंह ३५ प्रातु श्री अरिसिंह श्री हम्मीर ३७ श्री खेससिह ३८ श्री लक्षाहूयनरेन्द्र ३६ नंदन सुवर्ण तुलादिदान पुण्य परोपकारादि सारगुण सुरद्रुम विश्राम नंदन श्रीमोकल महिपति ४० कुलकानन पंचान
SR No.009678
Book TitleJain Lekh Sangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year
Total Pages341
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size98 MB
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