SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूरिवरश्रीए नीचे मुजबना नाना मोटा १४ थी १५ महत्त्वना अत्यंत सुंदर चमत्कारिक अलंकारोथी भरपुर ग्रंथो बनाव्या हता. १. श्री अध्यात्म कल्पद्रुम । ८. संतिकरं स्तोत्र २. श्री उपदेशरत्नाकर ९. सीमंधरस्तुति (स्वोपंज्ञवृत्तिसाथे) १०. अंगुल-सित्तरी ३. श्री जयानंद केवली चरित्र ११. वनस्पति-सित्तरी ४. मित्रचतुष्ककथा १२. तपागच्छ-पदावली ५. पाक्षिक-सित्तरी १३. विद्यगोष्ठी ६. शांतरसभावना १४. योगशास्त्र ४ थो प्रकाश ७. जिनस्तोत्ररत्नकोश बालावबोध साथे. पू. आचार्यदेवश्रीनी बधी कृतिओमां महत्त्वनी कृति 'गुर्वावली' ग्रंथ जे के तेओश्रीए पोताना गुरु श्री देवसुंदरसूरि म. उपर १०८ हाथ लांबो 'विज्ञप्ति पत्र' भव्य सुंदर संस्कृत भाषामां अनेक अलंकारो छंदो विविध चित्रोवाला श्लोकोथी लखेल जेमांनो ५०० पद्यनो एक विभाग "गुर्वावलो" नामे गुरुपरंपरा सूचवनारो भाग बहुसुंदर आज सुधी मलतो हतो __ पण पू. आगमोद्धारक आचार्यदेवश्रीए प्राचीन ह. लि. भंडारोमांथी मली आवेल अप्रसिद्धस्तोत्रोना संग्रहमा ते त्रिदशतरंगिणीमांनो भाग छुटक पानां रूपे उपलब्ध थएल जेनी प्रेसकोपी करावीने जैनानंदपुस्तकालय सुरतना संग्रहमा राखी हती। पू. गच्छाधिपति आचार्यदेवश्रीए खूबज परिश्रमकरी ते प्रेसकोपीनुं संशोधन करी विद्वानोने साहित्यनो रसास्वाद मले अने पूर्वाचार्योनी विद्वत्तानो परिचय मले ते हेतुथी 'जैनस्तोत्रसंचय' "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009676
Book TitleJain Stotra Sanchayasya Part 1 2 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasagarsuri
PublisherRamanlal Jaychand Shah Kapadwanj
Publication Year1960
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy