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________________ (4) वि. सं. 1466 मां वाचकपदवी थएल. पू. आ. श्री मुनिसुंदरसूरि म. ना श्री जयचंद्र, श्री भुवनसुंदर, श्री जिनकीर्ति, श्री रत्नशेखर, श्री जिनसुंदर, श्री भावसुंदर, श्री अमरसुंदर, श्री सोमदेव, श्री सुधानंदन, श्री जिनमंडन, श्री रत्नहंस, श्री साधुराज्य अने श्री विवेकसमुद्र नामना तेर गुरुभाईओ हता। पू. आ. श्री देवसुंदरसूरिकृत श्री शांतिनाथ चरित्रनी वि. सं. 1479 मां लखायेल प्रशस्तिमां पू. आ. श्री मुनिसुंदरसूरि म. ने शांतिस्तव द्वारा 'महामारिनिवारक' अने 'सहस्रावधानी' ए बिरुदथी वर्णव्या छ / __ वली खंभातमां दफरखानसूबाए 'वादी-गोकुल-खंडक' बिरुद आपेल / तेमज दक्षिणना पंडितोए 'कालीसरस्वती' विरुद आपेल / आ सूरिवरना उपदेशथी चंपकराज, देवा, धारा विगेरे राजाओओ अने शीरोहीना राव सहस्रमल्ले पोताना देशमां अमारिपटह वगडावेल हतो। आ सूरिवरश्रीए सूरिमंत्रनी 24 वार विधिपूर्वक अनेक छट्ठ अट्ठम आदि साथे आराधना करेली जेथी पद्मावती देवी आदि अनेक देवदेवीओ तेमनी सेवामा रहेता / तेओश्रीने वि. सं. 1479 मां आचार्यपदवी मलेली अने वि. सं. 1499 मां भट्टारक पदवी मलेली. वि. सं. 1503 ना का. सु. 1 ना दिने कोरंटक तीर्थ (कोरटाजी-शिवगंज पासे मारवाड) मां समाधिपूर्वक 67 वर्षनी वये स्वर्गवास थयो / "Aho Shrut.Gyanam"
SR No.009676
Book TitleJain Stotra Sanchayasya Part 1 2 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasagarsuri
PublisherRamanlal Jaychand Shah Kapadwanj
Publication Year1960
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size6 MB
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