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________________ ना बे भागना संपादन-प्रकाशन पछी आ त्रीजो विभाग पू. आ. श्री मुनिसुंदरसूरि म. श्री आदि रचित चमत्कृतिवालां काव्योस्तोत्रोना संग्रहने व्यवस्थित करी सुज्ञ-जनतासमक्ष प्रस्तुत कर्यो छ। त्रिदशतरंगिणीनो प्रथम श्रोत विगेरे स्तुतिस्तोत्रनी बीजी प्रत नहिं मलवाथीं एमां कोई कोई स्थले अशुद्धी रहेवा पामी छे छे तेने सुज्ञ-जनो क्षंतव्य गणशे । देवगुरुकृपाए वर्षोंनी कामना पू. गच्छाधिपतिनी निश्रामा श्रुतज्ञानना मार्मिक रहस्यने प्राप्त करवानी पूर्ण थयाना सौभाग्यनी यत्किंचित् अंशे सफलतानी साथे आ संपादनना तेमज कर्ताना परिचय आदिनी माहीती आपवारूपे आ प्रस्तावना लखवानी आज्ञा पू. गच्छाधिपतिश्रीनी मेलवी हुं मारी जातने बहुज कृतार्थ अने धन्यभाग्य मार्नु छु । साधन-संयोग-सामग्री आदिनी यथाशक्य मेलवणी करी आ. प्रास्ताविक नुं आलेखन कर्यु छे । छद्मस्थसुलभ कोई क्षति आमां रही होय तेनी त्रिविधे २ सकलसंघसमक्ष क्षमाप्रार्थना साथे प्रस्तुतसंग्रहने भावशुद्धिपूर्वक पठनमननादि द्वारा आत्मकल्याणना पंथे धपवामां अचूक उपयोगी साधनतरीके भव्यात्माओ अपनावे ए शुभकामना । ली. वि. सं. २०२१ आसो वद १३ कपडवंज श्रमणसंघसेवक पू. तपस्वो श्री धर्मसागरगणी चरणोपासक मुनि अभयसागर "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009676
Book TitleJain Stotra Sanchayasya Part 1 2 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasagarsuri
PublisherRamanlal Jaychand Shah Kapadwanj
Publication Year1960
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size6 MB
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