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________________ (3) पछी 'श्री जिनस्तुतिस्तोत्ररत्नकोश' नामे उत्तर विभाग शरु थाय छे / शरुआतमा 39 गाथान स्तोत्र छे. जेमा 24 तीर्थंकरोनी स्तुति (जेमा 20 मा मुनिसुव्रतस्वामीनी स्तुति बे छे पाठांतररूपे एक वधु) साधारणतीर्थंकरस्तुति, शाश्वतजिनचतुष्टयस्तुति, पुंडरीक स्तुति, गौतमस्तुति, शाम्ब-प्रद्युम्न-रथनेमि-मरुदेवा-राजीमती आदि सिद्धस्तुति, सिद्धचक्रस्तुति, पछी प्रकीर्णकस्तुतिओ छे / आ स्तुतिओ उपर स्वोपज्ञ अवचूरि छे. अहिं ग्रंथनो एक विभाग पुरो थाय छ / बीजा विभागमां श्री शङ्केश्वरपार्श्वनाथ स्तवनम् / 1 / तीर्थवन्दना / 2 / श्रीवीरस्य पञ्चवर्गपरिहारस्तुतिः / / श्री महावीरजिनस्तुतिः / 4 / श्री ऋषभजिनस्तुतिः / 5 / ह्रींकारवर्णनस्तवनम् 16 / साधारणजिनस्तवः 171 तथा एक श्लोक 18! ए आठ कृतिओ अन्यकृत छ / प्रथम विभागना कर्ता सहस्रावधानी पू. आ. श्री मुनिसुंदरसूरिजी महाराज प्रभु महावीरदेवपरमात्मानी पाटे 51 मा छे / आ सूरिदेवनो जत्म वि. सं. 1436 मां थएल / सात वर्षनी लघुवये दीक्षा वि. सं. 1443 मां पू. आ. श्री देवसुंदरसुरि म. पासे ग्रहण करी पू. आ. श्री ज्ञानसागरसुरि म. मासे तेमणे विद्याभ्यास करेल. सूरिवर्यश्रीए बारवर्षनी लघुवये व्याकरण काव्य अने छन्दशास्त्रना विविध विषयोने समजावनार 'श्री विद्यगोष्ठी' नामे अत्यद्भूत ग्रंथ रचेल / "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009676
Book TitleJain Stotra Sanchayasya Part 1 2 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyasagarsuri
PublisherRamanlal Jaychand Shah Kapadwanj
Publication Year1960
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size6 MB
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