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________________ १६२ प्राचीनलिपिमाला [प्रारंभ] कृष्ण के स्वगौरोहण से अर्थात् भारत के युद्ध के पीछे माना है परंतु उसको पहले विज्ञान ने स्वीकार नहीं किया. वराहमिहिर लिखता है कि युधिष्ठिर के राज्यसमय सप्तर्षि मा मत पर थे और उस राजा का शककाल (संवत् ) २५२६ वर्ष रहा अर्थात् उसके संवत् के २५२६ वर्ष बीनने पर शक संवत् चला. इससे महाभारत के युद्ध का द्वापर के अंत में नहीं किंतु कलियुग संवत् के (३१७६-२५२६) ६५३ वर्ष व्यतीत होने पर होना मानना पड़ता है. कल्हण पंडित कश्मीर के राजाओं के राज्यसमय के विषय में लिखते हुए कहता है कि 'द्वापर के अंत में भारत [ युद्ध ] हुआ इस दंतकथा से विमोहित हो कर किनने एक [ विद्वानों ] ने इन राजाओं का राज्यकाल ग़लत मान लिया है.......जब कलि के ६५३ वर्ष व्यतीत हुए तब रुपांडव हुए" अर्थात् भारत का युद्ध हुआ. यह कथन वराहमिहिर के उपर्युक्त कथन के अनुसार ही है. पुराणों में परीक्षित के जन्म ( महाभारत के युद्ध ) से लगा कर महापद्म (नंद) के राज्याभिषेक तक १०५०५ वर्ष होना भी लिखा मिलता है. महापद्म (नंद) के वंश का राज्य १०० वर्ष तक रहा जिसके पीछे मौर्य चंद्रगुप्त ने राज्य पाया चंद्रगुप्त का राज्याभिषेक ई. स. पूर्व ३२९ के आसपास होना निश्चित है अतएव पुराणों के उपर्युक्त कथनानुसार भारत युद्ध का ई. स पूर्व (३२१ + १००+१०५०= ) १४७१ के आस पास होना मानना पड़ता है. पुराणों में दी हुई भारत के युद्ध से लगा कर महापद्म (नंद ) तक की वंशावलियों में मिलनेवाली राजाओं की संख्या' देखने हुए भी यह समय ठीक प्रतीत होता है. पदेन भगवान विष्णु पुराण अंश ४२४४५). विष्णुर्भगवतो भानुः कृष्णाख्योऽसी दिवं गतः । तदा विशत्कलिलोकं पोप यद्धमते जनः ( भागवत. स्कंध १२ अध्याय २ श्लोक २६. ) महाभारत से पाया जाता है कि पांडवों ने विजयी होने के बाद १५ वर्ष तक तो राजा ( धृतराष्ट्र) की आज्ञा के अनुसार सब कार्य किया. फिर भीम के बाग्बाण से खिन्न हो कर राजा चिरक्क हुआ तब युधिष्ठिर स्वतंत्र राजा बना, फिर ३६ वर्ष और यादवों के स्वर्गवास की खबर आई तब परीक्षित को राज्यसिहासन पर पिला कर पांडवों ने दीपदी सहित महाप्रस्थान किया' (पं. पॅ जि. ४०, पृ. १६३-६४ ) इस हिसाब से तो कृष्ण का स्वर्गारोहण, पांडवों का महाप्रस्थान एवं पुरा का कलियुग का प्रारंभ भारतयुद्ध से १२+७६०) ५१ वर्ष बाद होना चाहिये. ९. सन्मामु मुनयः शासात पृथ्वीं युधिष्ठिरे नृपती | पद्विकपचद्वियुतः शककालस्तस्य राज्यस्य ( वाराही संहिता, सप्तविचार, श्लोक ३). . भारतं द्वापरान्तेऽभूद्वार्तयेति विमोहिताः । केचिदेतां मृरा तेषां कालसङ्ख्या प्रचक्रिरे ॥ ४८ ॥....॥ शतेषु षट्सु सार्द्धेषु त्र्यधिकेषु च भूतले । कलेर्गतेषु वर्षाणामभवन्कुरुपाण्डवाः ॥ ५९ ॥ ( राजतरंगिया, तरंग १ ) ४. भारत का युद्ध हुआ उस समय परीक्षित गर्भ में था इसलिये उसका जन्म भारत के युद्ध की समाप्ति से कुछ ही महीनों बाद हुआ होगा. अध्याय २७३, श्लोक ३६. वायु). यावत्परीक्षितो जन्म यावनेदाभिषेजन्म पायदाभिषेचनम् । नुवर्ष * महापाभिषेकात्तु यावज्जन्म परीक्षितः । एवं सहस्त्रं तु ज्ञेयं पंचाशदुत्तरं ( मत्स्यपुराण पुराण, अ. ६६, लो. ४१५. ब्रह्मांडपुराण, मध्यम भाग, उपोद्धात पाद ३. श्र. ७५, लो. २२७ चनम् । एतद्वर्षसहस्त्रं तु ज्ञेयं पचदत्तरं विष्णुपुराण, अंश ५ . २४.२२) आरभ्य सहस्रं तु तं पंचदशोत्तरम् (भागवत. स्कंध १२ श्र. २, श्लो. २६) इस प्रकार परीक्षित के जन्म से लगा कर महापद्म (नंद) के राज्याभिषेक तक के वर्षों की संख्या मत्स्य, वायु और ब्रह्मांडपुराण में २०५०, विष्णु में १०१५ और भागवत में ११९५ दी है. अधिकतर पुराणों में १०५० दी है जिसको हमने स्वीकार किया है. ८ चंद्रवंशी श्रजमीढ के पुत्र ऋक्ष का वंशज और जरासंध का पुत्र सहदेव भारत के युद्ध में मारा गया. फिर उसका पुत्र ( या उत्तराधिकारी ) सोमाधि ( सोमापि ) गिरिब्रज का राजा हुआ जिसके पीछे २१ और राजा हुए. ये २२* राजा कहलाये. इस वंश के अंतिम राजा रिपुंजय को मार कर उसके मंत्री शुनक ( पुलिक) ने अपने पुत्र प्रद्योत को राजा बनाया. प्रद्योत के वंश में ५ राजा हुए जिनके पीछे शिशुनाग वंश के २० राजा हुए. जिनमें से १० राजा महमंदी का * ब्रह्मांडपुरा में बृहद्रथवंशी राजाओं की संख्या २२ और मत्स्य तथा वायु में ३२ दी है. विष्णु और भगवत मै संख्या नहीं दी. किसी पुराण में २२ से अधिक राजाओं की नामावली नहीं मिलती इसीसे हमने बृहद्रवंशी राजाओं की संख्या २९ मानी है. Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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