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________________ भारतीय संवत् ३ रविवार और तिष्य (पुष्य) नक्षत्र लिखा है। इससे भी सप्तर्षि और विक्रम संवत् के पीच का अंतर ऊपर लिखे अनुमार ( १७१५-१६-१६८१८१)ही पाता है. ___ सप्तर्षि संवत् का प्रारंभ चैत्र शुक्ला १ से होता है और इसके महीने पूर्णिमांत है. इस संवत् के वर्ष बहुधा वर्तमान ही लिखे जाते हैं. प्राचीन काल में इस संवत् का प्रचार कश्मीर और पंजाब में था परंतु अब कश्मीर तथा उसके आस पास के पहाड़ी इलाकों में ही, विशेष कर ज्योतिषियों में, रह गया है. २. कलियुग संवत् कलियुग मंचन को भारतयुद्ध संवत् और युधिष्ठिर संवत् भी करते हैं. इस संवत् का विशेष उपयोग ज्योतिष के ग्रंथों का पंचांगों में होता है तो भी शिलालेखादि में भी कभी कभी हममें दिये हुए वर्ष मिलते हैं। इसका प्रारंभ ई.स. पूर्व ३१०२ नारीख १८ फरवरी के प्रात:काल में माना जाता है. चैत्रादि विक्रम संवत् १९७५ ( गत) और शक संवत् १८४० (गत) के पंचांग में गन कलि ५०१६ लिया है. इस हिसाब से चैत्रादि गत विक्रम संवत् में (५०१६-१९७५=).४४, गत शक सवत में (५०१६-१८४०%)३१७६, और ई.स. में ३१०१ जोड़ने से गत कलियुग संवत् आना है. दक्षिण के चालुक्यनंशी राजा पुलकेशि (दूसरे ) के समय के, एहोळे की पहाड़ी पर के जैन मंदिर के शिलालेख में भारतयुद्ध से ३७३५ और शक राजाओं (शक संवत्) के ५५६ वर्ष बीनने पर उक्त मंदिर का बनना बतलाया है। उक्त लेख के अनुसार भारत के युद्ध (भारतयद्ध संवत) और शक संवत् के बीच का अंतर (३७५३-५५६%) ३११७ वर्ष पाता है ठीक यही अंतर कलियुग संवत् और शक संवत् के बीच होना ऊपर बतलाया गया है, अतएव उक्त लेख के अनुसार कलियुग संवत् और भारतयुद्ध संवत् एक ही हैं. भारत के युद्ध में विजयपाने से राजा युधिष्ठिर को राज्य मिला था जिससे इस संवत् को युधिष्ठर संवत्' भी कहते हैं. पुराणों में कलियुग का श्रीनृपत्रिक्रमादित्यराज्यस्य गताब्दाः ११७ श्रीसप्तर्विमते संवन ३६ पो बति ३ स्वौ तिष्यनक्षत्रे (१.; जि.२०. पृ १५२ ). २. कभी कभी गत वर्ष भी लिखे मिलते हैं, जैसे कि करयटरचित देवीशतक' की टीका के अंत में यह श्लोक है बमुमुनिगगगोदधिसमकाले याते कलेस्तथा लोके । द्वापञ्चाशे वर्षे रचितेयं भीमगुप्तनृप ।। (इ.; जि.२०, पृ. १५४ यहां पर गत कलियुग संवत् ४०७८ श्रीर लौकिक संवत् ५२ दिया है जो गत है (याते' दोनों के साथ लगता है) क्योंकि वर्तमान ५३ में ही गत कलियुग संवत् ४०७८ आता है. परंतु पैसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं। हिंदुओं की कालगणना के अनुसार कलियुग एक महायुग का १० वा अंश मात्र है. महायुग में ५ युग माने जाते हैं जिनको कृत, ता. द्वापर और कलि कहते हैं. कलियुग ४३२००० वर्ष का, द्वापर उससे दुगुना अर्थात् ८६४००० वर्ष का, वेता तिगुना अर्थात् १२६६००० वर्ष का और कृत चौगुना अर्थात् १७२८००० वर्ष का माना जाता है. इस प्रकार एक महायुग. जिसको चतुर्युगी भी कहते हैं, कलियुग से १० गुना अर्थात् ४३२०००० वर्ष का माना जाता है. ऐसे ७१ महायुग का एक मन्यंतर कहलाता है. १४ मन्तर और ६ महायुग अर्थात् १००० महायुग (-५३२००००००० वर्ष) को एक कप या ब्रह्मा का दिन कहते है और उतने ही वर्षों की रात्री भी मानी गई है ___'अष्टाचत्वारिंशदधिकत्रिशतो[त्त] रेषु चतुःसहस्त्रेषु कलियुगसंवत्सरेषु परावृत्तेषु सत्सु । स्वराज्यानुभवकाले पंचमे साशरणसंवत्सरे ( गोवा के कदमवंशी राजा शिववित्त [षष्ठदेव दूसरे के समय के दानपत्र से. ई. जि. १४, पृ. २१०). ___५. त्रिंशत्सु लिसहस्रेषु भारतादाहनादितः [ 1 ] सप्ताब्दशतयुक्तेषु श(गोतेषब्दषु पश्चमु[1] पञ्चासत्सु कनो काले षट्सु पश्चतासु च[1] समासु समतीतासु शकानामपि भूभुमाम् (प.ई. जि. ६, पृ.७). .. डॉ. कीलहॉर्न संगृहीत दक्षिण के लेखों की सूची, पृ. १६२, लेखसंख्या १०१७. च [1] समासु समतासहसेषु भारतादाहवादितः सर] के समय के दानपत्र सत्सु । स्वराज्यानुभव कोलहॉर्न संग माम् (..शिग तेषब्दषु पर Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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