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________________ भारतीय संवत्. १६३ भारत युद्ध के समय संबंधी ऊपर उद्धृत किये हुए भिन्न भिन्न मतों पर से यही कहा जा सकता है कि पहिले के कितने एक लेखकों ने कलियुग संवत् और भारतयुद्ध संवत् को एक माना है। परंतु भारत का युद्ध कलियुग के प्रारंभ में नहीं हुआ. ३- वीरनिर्वाण संवत. जैनों के अंतिम तीर्थंकर महावीर (वीर, वर्द्धमान) के निर्माण (मोक्ष) से जो संवत् माना जाना है उसको 'वीरनिर्वाण संवत् कहते हैं. उसका प्रचार पहुधा जैन ग्रंथों में मिलता है तो भी कभी कभी उसमें दिये हुए वर्ष शिलालेखों में भी मिल जाते हैं. (अ) श्वेतांबर मस्तुंगसरि ने अपने 'विचारश्रेणि' नामक पुस्तक में वीरनिर्वाण संवत् और विक्रम संवत् के बीच का अंतर ४७० दिया है। इस हिसाब से विक्रम संवत् में ४७०, शक संवत् में ६०५ और ई. स. में ५२७ मिलाने से वीरनिर्वाण संवत् आता है. (आ) वेतांबर देय उपाध्याय के शिष्य नेमिचंद्राचार्य रचित 'महावीरचरियं' नामक प्राकृत काव्य में लिखा है कि 'मेरे (महावीर के ) निर्वाण से ६०५ वर्ष और ५ महीने बीतने पर शक राजा उत्पन्न होगा इससे भी वीरनिर्वाण संवत् और शक संवत् के बीच ठीक वही अंतर आता है जो ऊपर लिखा गया है. (इ) दिगंबर संप्रदाय के नेमिचंद्र रचित 'त्रिलोकसार' नामक पुस्तक में भी वीरनिर्वाण मे ६०५ वर्ष और ५ महीने बाद शक राजा का होना लिखा है. इससे पाया जाता है कि दिगंबर संप्रदाय के जैनों में भी पहिले वीरनिर्वाण और शक संवत् के बीच ३०५ वर्ष का अंतर होना स्वीकार किया जाता था जैसा कि वेतांवर संप्रदायवाले मानते हैं, परंतु 'त्रिलोकसार के टीकाकार माधवir trainerr में लिखे हुए 'शक' राजा को भूल से 'विक्रम' मान लिया जिससे कितने एक पिल्ले दियंगर जैन लेखकों ने विक्रम संवत् से २०५५ ( शक संवत् से ७४० ) वर्ष पूर्व वीरनिर्वाण होना मान लिया जो ठीक नहीं है. दिगंबर जैन लेखकों ने कहीं शक संवत् से ४६१, कहीं ६७६५ और कहीं १४७६३ वर्ष पूर्व वीरनिर्वाण होना भी लिखा है परंतु ये मत स्वीकार योग्य नहीं हैं. पुत्र महापा] ( नंद ) पा. इस गणना के अनुसार महाभारत के युद्ध से लगा कर महापद्म की गद्दीनशीनी तक ३७ राजा होते हैं जिनके लिये १०५० वर्ष का समय कम नहीं किंतु अधिक ही है क्योंकि औसत हिसाब से प्रत्येक राजा का राजस्वकाल २८ वर्ष से कुछ अधिक ही आता है. १. विकमरारंमा परउ सिरित्रीरनिव्वुई भगिया । सुन्न मुशिअजुतो विक्रमकाल जिएकालो || किमकालाजिनस्य वीरस्य कालो जिनकालः शून्यमुनिवेदयुक्तः चत्त्रारिशतानि सप्तत्यधिकवर्षाणि श्रीमहावीरविक्रमादित्ययोरतरमित्यर्थः ( विचारश्रेणि). यह पुस्तक ई. स. १३१० के आस पास बना था. ९. हि वामास पंचहि वाहि पंचमासेहिं । मम निव्ययागयरस उ उपजिस्मइ सगो राया ॥ ( महावीरचरियं ). यह पुस्तक वि. सं. ११४१ ( ई. स १०८४ ) में बना था. ५. प्रणह्यस्सयत्रस्तं पनामास जुदं गमिश्र वीर निम्बुइदो सगराजो० ( त्रिलोकसार, श्लो. ८४८). यह पुस्तक त्रि. सं. की ११ बीं शताब्दी में बना था. इरिवंशपुराण में भी वीरनिर्वाण से ६०५ वर्ष बीतने पर शक राजा का होना लिखा है और मेघनंदि के श्रावकाचार में भी ऐसा ही लिखा है ( . ऍ, जि. १२ पृ. २२ ). श्रीनाथनिर्वृतेः सकाशात्मा गया पखात् मकराना (लोकसार के उप युंक श्लोक की डीहा ). दिगंबर जैन के प्रसिद्ध तीर्थस्थान अवरायेलगोला के एक लेख में वर्धमान वीर निर्वाण संवत् १४६३ में विक्रम संवत् १८८८ और शक संवत् १७५२ होना लिखा है जिसमें बोरनिर्वाण संवत् और विक्रम संवत् का अंतर ६०५ आता है (इं. एँ, जि. २४, पृ. ३४६ ) इस अशुद्धि का कारण माधवचंद्र की अशुद्ध गणना का अनुसरण करना ही हो. * श्रीरभियां सिद्धिगदे पर काल उपरा हवा] वरे सिद्धे सहस्त्रमि () () से उदास विर Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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