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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिकना चंदन वृक्ष का ११ ___ आगे बढ़ते-बढ़ते श्रेणिक ने दूर से जंगल में दावानल सुलगता हुआ देखा... देखते ही उसने तेरहवें रत्न का स्मरण किया और दौड़ता हुआ जाकर उस दावानल में कूद गया। __ वह भीलकन्या तो अग्नि से घबराती थी! वह दूर ही खड़ी रही! कुमार ने उसे आवाज लगाई... 'ओ कन्या, यदि तुझे मेरे साथ शादी करनी है... तो यहाँ पर चली आ ।' भीलकन्या का चेहरा श्याम हो गया। वह अपने मन में सोचती है : 'मुझे पता नहीं था कि इस युवक के पास भी मंत्रशक्ति होगी...। यह तो बड़ा जादूगर है... आग में गिरकर भी जलता नहीं है! मैंने बड़ी जल्दबाजी की। उसने मुझे ठग डाला | पर अब मैं वैसी गलती नहीं दोहराऊँगी। अब मुझे मेरे योग्य युवक मिलेगा तब मैं उसका विनय करूँगी। उसे डर लगे वैसी बात नहीं करूँगी। यदि मैं इस युवक के समक्ष मीठी जबान में चिकनी-चुपड़ी बातें करके इसकी दासी बन गई होती तो? यह जरूर मेरे मोहपाश में बंध जाता! मैंने खुद अपने मुँह अपनी बड़ाई हॉककर सारा खेल बिगाड़ दिया। वह मंत्रतंत्र का जानकार था। खैर, मैं खुद ही अभागिनी हूँ| अभागिनी के हाथ में रत्न टिकेगा भी कैसे? मैंने मूर्खता की... मेरा सारा ज्ञान उसे बता दिया... अब मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ?' वह रोने-कलपने लगी। उसे अब मैं रोक भी नहीं सकती!' यों समझकर वह पर्वत के शिखर पर जाकर वापस खड़ी हो गई। श्रेणिक दावानल में से निकलकर सर पर पाँव रखकर भागा, कलकल बहती हुई गंगानदी के किनारे पर पहुँचा | नदी के किनारे पर एक बहुत बड़ा चंदन का सूखा हुआ पेड़ उसने देखा। श्रेणिक फटाफट उस पेड़ पर चढ़ गया... जैसे ही श्रेणिक पेड़ पर चढ़ा कि वह बड़ा भारी वृक्ष टूटा और सीधा ही गंगा के प्रवाह में गिरा। कुमार ने उसी वक्त सातवें 'जलतारक' रत्न को याद किया। पेड़ पर बैठा हुआ कुमार नदी में बहने लगा। जैसे किसी जहाज में बैठा हो... वैसी निश्चितता के साथ कुमार पेड़ पर जमा रहा। एक के बाद एक यों दिन बीतने लगे। उसने पंद्रहवें रत्न का स्मरण किया। न तो भूख सताती है... न प्यास याद आती है! इस तरह पूरे २० दिन बीत गये, तब उस चंदनवृक्ष के साथ कुमार बेनातट नगर के किनारे पर जा पहुँचा। For Private And Personal Use Only
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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