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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिकना चंदन वृक्ष का १० मैं बाघ-सिंह से भी डरती नहीं हूँ। मैं अकेली जंगलों में निर्भय होकर घूमती रहती हूँ। भूत-प्रेत या पिशाच का मुझे भय नहीं है! चोर लुटेरे या साँप - सँपेरे भी मुझे डरा नहीं सकते! नदी में कितना ही पानी चढ़ा हो, मैं आराम से तैर सकती हूँ। बड़े से बड़े हाथी को भी उसका कान खींच कर खड़ा रख सकती हूँ... हाँ... बस एक अग्नि ही ऐसी चीज है ... जिससे मैं दूर रहती हूँ ! तुम जिस इलाके में खड़े हो, वह इलाका सौ कोस की लंबाई का है । तुम भागकर भी कहीं नहीं जा सकते ! इसलिए मेरा कहना मानो और मेरे साथ शादी रचा लो। तुम चाहो या मत चाहो ... मेरे साथ शादी किये बगैर तुम बच नहीं सकते!' कुमार शांति से स्त्री की बातें सुनता रहा । उसने अपने चेहरे पर जरा भी घबराहट या बेचैनी की रेखाएँ उभरने न दी। उसने अपने मन में सोचा : ‘यह स्त्री तो डायन सी है! इससे मैं शादी कैसे कर सकता हूँ? यह नीच जाति की है... ताकतवाली है... और धूर्त भी है। इसके साथ यदि शादी करूँ तो यह मुझे पूरा ही फँसा डाले ! और फिर इसके साथ शादी करने से मेरे उच्च कुल पर कलंक चढ़ेगा, मेरी उच्च जाति पर कलंक लगेगा । मेरा क्षत्रिय कुल भील कुल की बराबरी पर उतर जाएगा । इससे शादी करूँ तो मुझे इसके हाथ का खाना खाना पड़ेगा, इसके भील पिता को झुकना पड़ेगा, इससे तो मेरे महान् पिता का अपमान ही होगा ! नहीं, किसी भी हालत में मैं इसके साथ शादी नहीं कर सकता। उत्तम - अच्छे कुल में पैदा होकर जो लोग अधम के साथ दोस्ती रचाते हैं- रिश्ता बनाते हैं... वे भी अधम हो जाते हैं । मुझे एक बार मेरे गुरु ने कहा था कि विधाता ने इस संसार में दुष्ट औरत के रूप में एक फाँसी ही बनाई है... उसमें भले भोले लोग, जाने-अनजाने में फँस जाते हैं। दुष्ट औरतें झूठ, साहस, माया, मूर्खता, अतिलोभ, निःस्नेह और निर्दयता-इन सात दोषों से भरी होती हैं। यह स्त्री तो है भी राक्षसी ही! इससे तो दूर रहना ही अच्छा ! किसी भी कीमत पर इस औरत के फंदे से बचना होगा । कुमार उस भील कन्या की ओर निगाह किये बगैर ही सीधा चलता रहा । धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा। उसने अपनी कमर में बंधे हुए रत्नों को याद किया। उनके प्रभावों को याद किये । वह भील कन्या उसके पीछे-पीछे चलने लगी। For Private And Personal Use Only
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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