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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org बिकना चंदन वृक्ष का १२ चंदनवृक्ष किनारे पर अटक गया । वृक्ष की सुवास पूरे नगर में फैलने लगी । लोग सोचने लगे : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'इतनी मदमस्त चंदन की खुशबू कहाँ से आती है ?' सभी लोग नदी के किनारे की ओर जाने लगे। देखते ही देखते हजारों स्त्री-पुरुष चंदनवृक्ष के पास एकत्र हो गये । एक धनाढ्य नागरिक ने कुमार से पूछा : 'ओ व्यापारी, इस चंदनवृक्ष की कीमत क्या है ? ' कुमार ने कहा : ‘यह पेड़ मैं तो सोने के बराबर तोलकर दूँगा । इतना बड़ा और भारी चंदनवृक्ष तो किसी राजा के खजाने में भी देखने को नहीं मिलता है!' लोग काफी एकत्र हो गये थे। नगरसेठ ने सोचा : 'लोभ-लालच से प्रेरित होकर ये सारे लोग चंदनवृक्ष को लूटने न लग जाएं !' इसलिए नगरसेठ ने ऊँची आवाज में घोषणा की : ‘ओ नगरवासी भाइयों, अब तुम यहाँ से दूर खिसको! यह जवान व्यापारी अकेला है। और अपने तो बहुत लोग हैं! इसका जरा सा भी चंदन यदि चोरी हुआ तो वह अपनी चोरी कही जाएगी। यह व्यापारी है... अपन भी व्यापारी हैं। इसलिए यह परदेशी व्यापारी अपना साधर्मिक ही माना जाएगा। कोई भी इस चंदनवृक्ष को हाथ नहीं लगाएगा। यदि किसी ने इसे छुआ तो वह चोर माना जाएगा। राजा उसे सजा करेगा ।' नगरसेठ की घोषणा सुनकर सभी लोग अपने-अपने घरों की ओर चल दिये । जिन्हें चंदन खरीदना था - वे व्यापारी ही वहाँ पर खड़े रहे। उन्होंने कुमार से कहा : 'नौजवान व्यापारी, हम लकड़ी काटने के लिए आरी, कुल्हाड़ी वगैरह साधन ले आते हैं... बड़ा तराजू भी साथ-साथ ले आएंगे... एक पल्ले में चंदन व दूसरे में सोना रखकर हम तेरी इच्छानुसार चंदन खरीदेंगे।' कुमार श्रेणिक प्रसन्न हो उठा । पूरा चंदनवृक्ष गिनती की पलों में बिक गया । उसे काफी सोना मिला। उसने सोने के बदले में कीमती रत्न खरीद लिये । व्यापारी लोग चंदन ले लेकर अपने-अपने घर को चल दिये। For Private And Personal Use Only
SR No.009639
Book TitleRajkumar Shrenik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages99
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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