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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपूर्व महामंत्र १८ जाता है, उस तरह नमस्कार महामंत्र की गंभीर ध्वनि सुनकर मनुष्य के पाप बंधन टूट जाते हैं। महामंत्र में एकाग्र-चित्त जीवों के लिए जल-स्थल श्मशानपर्वत-दुर्ग वगैरह उपद्रव के स्थान भी उत्सव रूप बन जाते हैं। विधिपूर्वक पंचपरमेष्ठी नमस्कार मंत्र का ध्यान करने वाले जीव तिर्यंच गति या नरक गति का शिकार नहीं बनते । इस महामंत्र के प्रभाव से बलदेव, वासुदेव, चक्रवर्ती की ऋद्धि प्राप्त होती है। विधिपूर्वक पठित यह मंत्र वशीकरण, स्तंभन आदि कार्यो में सिद्धि देता है। विधिपूर्वक स्मरण किया जाए तो यह महामंत्र पराविद्या को काट डालता है और क्षुद्र देवों के उपद्रवों को ध्वंस करता है। स्वर्ग, मृत्यु और पाताल-तीनों लोकों में, द्रव्य-क्षेत्रकाल और भाव की अपेक्षा से जो कुछ, आश्चर्यजनक अतिशय दिखायी देता है, वह सब इस नमस्कार महामंत्र की आराधना का ही प्रभाव है, यों समझना। तीनों लोक में जो कुछ संपत्ति नजर आ रही है वह नमस्कार रूप वृक्ष के अंकुर, पल्लव, कली या फूल हैं, यों समझना | नमस्कार रुपी महारथ पर आरूढ़ होकर ही अभी तक तमाम आत्माओं ने परम पद की प्राप्ति की है, यों जानना। जो मन-वचन-काया की शुद्धि रखते हुए एक लाख नवकार मंत्र का जाप करते हैं वे तीर्थंकर नाम-कर्म का उपार्जन करते हैं। ऐसे नमस्कार महामंत्र के ध्यान में यदि मन लीन-तल्लीन नही बनता है, तो फिर लंबे समय तक किये हुए श्रुतज्ञान या चरित्र धर्म का पालन भी क्या काम का? जो अनंत दुःखों का क्षय करता है, जो इस लोक और परलोक में सुख देने वाली कामधेनु है - कल्पवृक्ष है... उस मंत्राधिराज का जाप क्यों नहीं करना? दिये से, सूरज से या अन्य किसी तेज से जिस अँधेरे का नाश नहीं होता, उसका नाश नमस्कार महामंत्र से होता है। ज्यों नक्षत्रों में चंद्र चमकता है, वैसे तमाम पुण्यराशियों में भाव नमस्कार शोभित बनता है। विधिपूर्वक आठ करोड़, आठ लाख, आठ हजार, आठ सौ आठ बार इस महामंत्र का जाप यदि किया जाए तो करनेवाली आत्मा तीन जन्मों में मुक्ति प्राप्त करती है। अतः है भाग्यशीले, तुझे मैं कहती हूँ कि संसार-सागर में जहाज के समान इस महामंत्र का स्मरण जरूर करना। इसमें आलस नहीं करना। भावनमस्कार तो अवश्य परम तेज है। स्वर्ग एवं अपवर्ग का रास्ता है। दुर्गति को For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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