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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९ अपूर्व महामंत्र नष्ट करनेवाली अग्नि है। जो भव्य जीवात्मा अंतिम साँस की घड़ी में इस महामंत्र का पाठ करे... इसे गिने... सुने... इसका ध्यान करे उसे भावी जीवन में कल्याण की परंपराएँ प्राप्त होती हैं। मलयाचल में से निकलते चंदन की भाँति, दही में से निकलते मक्खन की भाँति, आगमों से सारतत्त्व और कल्याण की निधिस्वरूप इस महामंत्र की आराधना करनेवाला व्यक्ति चरितार्थ हो जाता है। पवित्र शरीर से, पद्मासनस्थ होकर, हाथ को योगमुद्रा में रखकर, संविग्न मनयुक्त होकर, स्पष्ट, गंभीर पर मधुर स्वर में इस नमस्कार महामंत्र का सम्यक् उच्चार करना चाहिए। शारीरिक अस्वास्थ्य वगैरह के कारण यह विधि यदि न हो सके तो 'असिआउसा' इसका जाप करना चाहिए। इस मंत्र का स्मरण भी यदि संभव न हो तो केवल 'ऊँ' का स्मरण करना चाहिए। यह 'ऊँ'कार मोह-हस्ति को बस में करने के लिए अंकुश के समान है। ___ महामंत्र का स्मरण था श्रवण करते वक्त यों सोचना विचारना चाहिए कि : 'मैं स्वांग अमृत से नहाया हूँ... चूंकि परमपुण्य के लिए कारणरूप परम मंगलमय यह नमस्कार महामंत्र मुझे मिला है! अहो! मुझे दुर्लभ तत्त्व की प्राप्ति हुई। प्रिय की संगति मिली, तत्त्व की ज्योति जली मेरी राह में! सारभूत पदार्थ मुझे प्राप्त हो गया । आज मेरे कष्ट दूर हो गये। पाप दूर हट गये... मैं भवसागर को तैर गयीः' हे यशस्विनी सुंदरी! समतारस के सागर में नहाते-नहाते उल्लासित मन से नमस्कार मंत्र स्मरण करने वाली आत्मा पापकर्मों को नष्ट करके सदगति को पाती है। देवत्व को प्राप्त करती है। परंपरा से आठ ही भवों में सिद्धि-मुक्ति को प्राप्त कर लेती है। इसलिए सुरसुंदरी! हमेशा-प्रतिदिन १०८ बार इस महामंत्र का स्मरण करना कभी मत भूलना । जो जीवात्मा हमेशा १०८ बार इस मंत्र का जप करता है, तो कोई अन्यदैवी उपद्रव उसे सताते है। __यदि जन्म के वक्त यह महामंत्र सुनने को मिलता है तो जीवन में यह मंत्र ऋद्धि देनेवाला होता है और मृत्यु के वक्त यदि यह महामंत्र सुनाई दे तो सद्गति प्राप्त होती है आत्मा को । विपत्ति या संकट के समय यदि यह मंत्र जपा जाये तो संकट टल जाते हैं । विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं | ऋद्धि के समय यदि इसे गिना जाये तो ऋद्धि का विस्तार होता है। पाँच महाविदेह-क्षेत्र में. कि जहाँ शाश्वत सुखमय समय होता है, वहां पर For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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