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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोर ने मचाया शोर २२७ MAHAka. XNM EALIZELtz. dasthetition ३४. चोर ने मचाया शोर anty . E - ---- N xxnerTeamarMENLAKerriSS.IN --- - -- बरस पर बरस गुज़रते हैं। अमरकुमार के आगमन का कोई समाचार नहीं मिल रहा है। न हीं और कोई साधन है कि जिससे अमरकुमार का अता-पता मिल सके। विमलयश के मन में कभी नैराश्य छा जाता है। कल्पनाओं का दर्पण धुंधलाने लगता है... पर अवधिज्ञानी महर्षि के वचन याद करके वह मन को धीरज देता है... 'आएँगे... ज़रूर! और यहाँ पर आएँगे! जितनी जुदाई की घड़ियाँ गिननी होंगी, वे तो गिननी ही पड़ेगी...। सुबह होने से पहले कभी-कभी अँधेरा और भी घना हो जाता है!' __श्री नवकार मंत्र के ध्यान में और परमात्मा के पूजन में उसकी आत्मा अपूर्व आदंन की अनुभूति प्राप्त करती है। गुणमंजरी के साथ जुड़ता हुआ... गाढ़प्रगाढ़ बनता हुआ सखत्वभाव उसको भीतरी तृप्ति से कभी-कभी भराभरा बना देता है। प्रजा के असीम प्यार और आदर के नीर उसे हमेशा तरोताज़गी देते रहते हैं...। प्रकृति का सौंदर्य, वीणा के तारों में से उठती स्वर-लहरी... इन सबमें वह डूब जाता है...। ध्यान में डूबकर आध्यात्मिकता का आनंद लुटता पिछले पाँच-सात दिन से विमलयश राजसभा में गया नहीं था। उस अरसे में एक दिन मालती बाहर से समाचार लायी : 'महाराजकुमार, समूचे नगर में हायतोबा मच गया है।' 'क्यों, क्या हुआ है?' एक चोर जगह-जगह पर चोरी कर रहा है...। किसी के पकड़ने में आ नहीं रहा है! 'नगर-रक्षक नहीं पकड़ सके क्या चोर को?' 'नहीं... बिलकुल नहीं, जब नगररक्षक नहीं पकड़ पाये चोर को... तब प्रजाजनों ने राजसभा में पुकार की... तब अपने ही नगर का एक सेठ चोर पकड़ने के लिए तैयार हुआ... 'रत्नसार' उसका नाम है!' 'क्या पकड़ लिया उसने चोर को?' For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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