SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोर ने मचाया शोर २२८ 'अरे! वह क्या पकड़ेगा? पकड़ने गया... तो खुद ही लुट गया!' 'क्या कह रही है तू? कैसे हुआ?' विमलयश को बात सुनने में मज़ा आ रहा था। 'कुमार, उस चोर को मालूम हो गया कि रत्नसार ने मुझे पकड़ने की तैयारी की है... इसलिए चोर ने रत्नसार को ही लूटने की योजना बना डाली। वह रत्नसार की हवेली में पहुँचा व्यापारी का भेष बनाकर! रत्नसार से उसने कहाः 'मैं परदेशी व्यापारी हूँ... रत्नों को खरीदने के लिए आया हूँ...। रत्नसार ने उसे क़ीमती रत्न-जवाहरात वगैरह दिखाया । उसका मूल्य बताया। चोर ने कहा : मैं कल सवेरे ही पैसे लेकर आऊँगा और रत्न खरीद लूँगा।' उसने हवेली का... तिजोरी का भली-भाँति निरीक्षण कर लिया। वह चला गया अपने घर | रात्रि में रत्नसार श्रेष्ठी तो चोर को पकड़ने के लिए नगर के दरवाजे पर जाकर खड़ा रहा। इधर चोर रत्नसार की हवेली में पहुँच गया। हवेली के पिछवाड़े की दीवार में सेंध लगाकर वह भीतर घुस गया । तिजोरी तोड़ी और रत्नों का डिब्बा उठाया। जवाहरात ले लिया। और तो और... रत्नसार के पहनने के सभी कपड़े भी साथ उठा लिये और वह चला गया अपने ठिकाने पर! इधर रत्नसार घूम-फिर कर थका-हारा वापस घर आया तो चौंक उठा... देखा तो तिजोरी टूटी हुई थी। बेचारा फूट-फूटकर रोने लगा। सुबह में राजसभा में जाकर महाराजा के समक्ष शिकायत की। विमलयश ने कहा : 'चोर काफी बुद्धिशाली प्रतीत होता है? 'कुमार, चोर कोई साधारण बुद्धिमान नहीं है। उसकी बुद्धि असाधारण है...! राजपुरोहित की तो क्या दशा बिगाड़ी है उसने?' "वह कैसे?' 'जब रत्नसार चोर को नहीं पकड़ सका... तब राजपुरोहित ने भरी राजसभा में प्रतिज्ञा की कि मैं चोर को पकदूंगा!' बस चोर को भी भनक लग गयी इस बात की किसी भी तरह...! उसके बारे में तलाश करके जानकारी प्राप्त कर ली : 'पुरोहित कहाँ जाता है, क्या करता है?' पुरोहित को नगर के बाहर देवकुलिका में जाकर जुआँ खेलने की आदत थी। चोर भी पहुँच गया देवकुलिका में! दूसरे जुआरियों के साथ खुद भी बैठ गया खेलने के लिए! पुरोहित भी आ पहुँचा था खेलने के लिए | चोर For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy