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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराक्रमी अजानंद ११० 'महाराज, मुझे वह सरोवर देखना है, जहाँ पर कि आप बाघ बन गये थे!' राजा ने कहा : 'ठीक है, कल सुबह ही हम वहाँ जायेंगे।' दूसरे दिन सबेरे-सबेरे अजानंद के साथ राजा सौ घुड़सवार सैनिकों को लेकर उस सरोवर के पास पहुँचा। राजा ने अजानंद से कहा : 'दोस्त, यही है वह जादुई सरोवर, और यही है वह करामती पानी, जिसने मुझको जानवर बना दिया था और फिर तेरे जैसा मित्र मुझे मिल गया। हालाँकि मैने तो वह पानी अनजाने में पीया था पर अब लगता है कि यदि मैं वह पानी नहीं पीता तो मुझे तेरे जैसा अच्छा दोस्त दुनिया में ढूंढ़े नहीं मिलता।' अजानंद ने कहा : 'महाराज! वैसे तो इस सरोवर का पानी भी और सरोवरों के पानी की तरह ही लगता हैं। दिखने में तनिक भी फर्क नहीं लगता है। फिर भी इस पानी का दुष्प्रभाव कैसा गजब का है! आदमी को जानवर बना दे! तो क्या यह जानवर को भी आदमी बना देता होगा? दोनों मित्र इस तरह बातें कर ही रहे थे कि अचानक एक आश्चर्यकारी घटना हुई। __उस जादुई सरोवर में से एक बड़ा मोटा ऊँचा हाथी प्रगट हुआ | अपनी सूंड़ को पानी पर पटकता हुआ वह सरोवर के किनारे आ धमका | इधर राजा, अजानंद और सारे सैनिक स्तब्ध होकर हाथी को देख रहे थे कि हाथी उनकी और झपटा। अपनी सूंड़ में उसने अजानंद को उठाया और तीव्र गति से सरोवर में वापस भागा। उसी वक्त हाथ में तलवार लेकर राजा ने उस हाथी के पीछे सरोवर में छलाँग लगायी। आगे हाथी और पीछे राजा! हाथी ने सरोवर में डुबकी लगाई तो राजा ने भी सरोवर में डुबकी मारी, पर हाथी तो वहाँ पर नजर ही नहीं आ रहा था। मायावी व्यंतर की भाँति हाथी अदृश्य हो गया था। फिर भी राजा तो पानी में गहरे उतरता ही रहा, उतरता ही रहा। पर न तो हाथी दिखा, न ही अजानंद का अता-पता लगा। राजा ने सरोवर में नीचे एक सुन्दर सा महल देखा । पूरा महल सोने का बना हुआ था। उसमे हीरे, मोती, जवाहरात जड़े हुए थे। राजा सोचता है - 'अरे! यह क्या हो गया? सरोवर कहाँ चला गया? वह हाथी भी गुम हो गया! और मेरा दोस्त अजानंद भी कैसे अदृश्य हो गया? लेकिन यह महल किसका है? कैसा सपने जैसा यह सब लग रहा है! ठीक है, पहले मैं इस महल में जाऊँगा और देखू कि अंदर क्या हो रहा है?' For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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