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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पराक्रमी अजानंद १११ ___ असलियत में वह महल नहीं था । पर चंडिका देवी का मंदिर था । चंडिका देवी की मूर्ति को देखकर अपना सिर झुकाया। हाथ जोड़कर देवी को प्रार्थना की : 'ओ माता, आज तो मुझ पर कलंक लग गया! मैं कितना कमजोर हूँ कि मुझे जीवन देनेवाले दोस्त की भी मैं रक्षा नहीं कर सका। मेरी आँखों के आगे हाथी उसको उठाकर ले गया । अब मुझे जीना नहीं है | मैं मेरा सिर तेरे चरणों में अर्पण करके तेरी कमल-पूजा करूँगा।' इतना कह कर राजा अपनी ही तलवार से अपने सिर पर प्रहार करने लगा कि इतने में वहाँ पर देवी प्रकट होती है और कहती है : 'ओ राजा! ऐसा साहस मत कर | तू क्यों अपना सिर काट रहा है? इसकी कोई जरुरत नहीं है। छ: महिने बाद तेरा मित्र तुझे मिल जायेगा।' यों कहकर देवी ने राजा के कान में एक गुप्त बात कही। एक दिव्य औषधि उसे दी और देवी वहाँ से अदृश्य हो गयी। राजा तो देवी के इस चमत्कार से भावविभोर हुआ जा रहा था। उसकी आँखें मुंद गयी थी। इतने में धुंघरुओं की छनक ने उसका ध्यान खींचा। उस मंदिर में एक सुंदर औरत हाथ में पूजा की थाल लेकर चली आ रही थी। उसने विधिपूर्वक देवी की पूजा की। फिर उसने घूमकर राजा के सामने देखा, राजा ने भी उस औरत के सामने देखा । वह औरत कुछ मुस्कराई और वापिस लौट गयी। राजा मन में सोचता है - 'आज यह सब क्या हो रहा है? एक के बाद एक आश्चर्यकारी घटनाएं हो रही हैं। यह औरत जो अभी ओझल हो गयी है वह कोई सामान्य औरत नहीं हो सकती। अवश्य वह कोई देवी होनी चाहिए।' राजा उस दिव्य औरत के विचारों में गुमसुम होकर सोच ही रहा था कि एक सुन्दर औरत आकर के वहाँ खड़ी हो गयी। उसने राजा को नमस्कार करके कहा : 'ओ राजन्! आप जिसके खयाल में खोये हुए हो, वह औरत और कोई नहीं लेकिन व्यंतर देवी सर्वांगसुन्दरी है। मैं उनकी दासी हूँ। वे अभी-अभी यहाँ से पूजन करके गयी हैं। उन्होंने आपको देखा था। वे आपको चाहने लगी हैं। उन्होंने ही मुझे आपके पास भेजा है और कहलाया है कि आप देवी के महल पर पधारिये | देवी आपका स्वागत करके खुश होंगी।' ___ व्यंतर देवी की दासी की ऐसी मीठी और चिकनी-चुपड़ी बातें सुनकर राजा ने सोचा - ___'अरे वाह! मेरी तो किस्मत ही खुल गयी। कुछ भी सोचे बगैर फटाफट मुझे इस दासी की बात मान लेनी चाहिए और इसके साथ जाना चाहिए | For Private And Personal Use Only
SR No.009636
Book TitleMayavi Rani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size1 MB
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