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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र १६ १२८ है। ऐसे मुनिवर निर्मल गुणरत्नों से भरे हुए होते हैं। [यहाँ 'मणि' शब्द का प्रयोग 'रत्न' के अर्थ में किया गया है] गुणों के रत्न चाहिए तो अप्रमत्त आत्मदशा में रहे हुए मुनिवरों के पास जाइये! सेवारूप, भक्तिरूप खुदाई कीजिए ! रत्न मिलेंगे ही। दूसरी उपमा दी है, मान सरोवर के हंस की । अप्रमत्त भाव में रहे हुए मुनिवर, मान सरोवर के हंस जैसे होते हैं । संयमधर्म मान सरोवर है और मुनिवर हंस हैं। ये हंस कभी कीचड़ से भरे हुए तालाब में नहीं जाते। ये हंस मोती के अलावा दूसरा भोजन नहीं करते। वैसे मुनिराज, असंयम की कोई प्रवृत्ति नहीं करते और ज्ञान-ध्यान के अलावा दूसरा भोजन नहीं करते! ऐसे मुनिवर परमात्मा से प्रीति बाँध लेते हैं, अथवा ऐसे महात्माओं की परमात्मा से प्रीति बंध जाती है। श्री आनन्दघनजी, ऐसे परमात्मप्रेमी महात्माओं को, उनकी जन्मभूमि को, उस काल [ समय] को, उनके माता-पिता को और कुल - वंश को लाख लाख धन्यवाद देते हुए कहते हैं धन्य ते नगरी, धन्य वेला घडी, माता- पित-कुल- वंश.... उस नगरी को धन्यवाद है कि जहाँ ऐसे महामुनियों ने जन्म लिया, उस समय को, उस घड़ी [पल] को धन्य है कि जिसमें उनका जन्म हुआ । उनके माता-पिता को धन्यवाद है कि ऐसे पुत्ररत्न को जन्म दिया.... और उनके कुल-वंश को धन्यवाद है कि ऐसी विभूति उस कुल - वंश में पैदा हुई । कवि यह बात बताते हैं कि सच्चे अर्थ में धर्म को पानेवाले ऐसे महामुनि ही होते हैं, धर्म को जीवन में जीनेवाले ऐसे महात्मा ही होते हैं। दूसरे लोग तो केवल धर्म की बातें ही करनेवाले होते हैं । परमात्मा से सच्चा संबंध भी ऐसे महात्माओं का ही होता है । अतः ऐसे महात्माओं की हार्दिक प्रशंसा करते हैं और धन्यवाद देते हैं। अपनी खुद की ऐसी आत्मस्थिति नहीं है, इसलिए परमात्मा से प्रार्थना करते हैंमन - मधुकर वर कर जोड़ी कहे, पदकज - निकट निवास घननामी आनन्दघन ! सांभलो, ए सेवक अरदास.... [जो कभी उत्पन्न नहीं होता है और कभी नष्ट नहीं होता है, वैसे अनादिअनन्त आत्मा [नित्य ] को 'घननामी' कहा गया है] For Private And Personal Use Only
SR No.009635
Book TitleMagar Sacha Kaun Batave
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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