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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ कोयला बने सोनामुहर 'पितातुल्य ससुरजी, इन गहनों को बेचकर भी आप अपना व्यापार चालू रखें ।' धनद सेठ ने कहा : 'तुम्हारी इतनी उदारता से मेरा दिल विभोर हुआ जा रहा है। पर मुझे तुम सबके गहनों की आवश्यकता नहीं है... न ही तुम्हारी सास के गहनों की जरुरत है। अभी तो हमारे पास जमीन के भीतर गाड़ा हुआ ढेर सारा धन है। आपत्ति के वक्त काम में आये... इसलिए अलग अलग जगह पर मैंने धन गाड़ कर रखा है!' सेठ की बात सुनकर सेठानी और पुत्रवधुएँ आनन्दित हो उठीं। सेठ ने अपने चारों पुत्रों को बुलाकर कहा : 'मैं तुम्हें जिस जगह का निर्देश दै... उस जगह पर खुदाई करनी है... और वहाँ से धन संपत्ति के घड़े बाहर निकालने हैं।' सेठ ने पुत्रों को जगह का निर्देश दिया। निशानी बतलाई। पुत्रों ने एक के बाद एक जगह खोद-खोद कर घड़े बाहर निकाले । प्रत्येक घड़े पर श्रीफल रखकर मिट्टी से लेप करके घड़ों के मुँह बंद किये हुए थे। सेठ ने मिट्टी का लेप दूर किया। श्रीफल दूर करके घड़े में हाथ डाला तो उनके हाथ में सोने की जगह कोयले के टुकड़े आये! दूसरा घड़ा खोला... उसमें से भी कोयले निकले...तीसरा...चौथा... पाँचवा यों दस घड़े खोल दिये। सभी में से कोयले ही कोयले निकले। सेठ तो सिर पीटने लगे। बेहोश होकर जमीन पर ढेर हो गये! सेठानी...पुत्र...पुत्रवधुएँ सभी रोने लगे। सेठ होश में आये | पर वे धैर्य गवाँ बैठे और फफक-फफक कर रो दिये। उन्होंने परिवार से कहा : हमारे दुर्भाग्य ने तो हद कर दी। जमीन में गाड़े हुए धन को भी कोयला बनाकर रख दिया । मेरी धारणा झूठी सिद्ध हुई। मैंने सोचा था... शायद बाहर का धन चला जाएगा तब यह जमीन में सुरक्षित रखा हुआ धन तो काम में आएगा। जब दुर्भाग्य आता है तब पूरी सेना के साथ आता है... चारों ओर से एक साथ धावा बोलता है... आदमी की अक्ल सुन्न हो जाती है... शास्त्रज्ञान व्यर्थ For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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