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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोयला बने सोनामुहर ३. कोयला बने सोनामुहर आचार्यदेव श्री देवचंद्रसूरिजी शिष्य परिवार के साथ विचरण करते हुए नागपुर पधारे। नागपुर के जैन संघ ने उनका आदर पूर्वक स्वागत किया। आचार्यदेव ने धर्म का उपदेश देकर सभी के मन को आनन्दित कर दिया। प्रतिदिन आचार्यदेव धर्म का उपदेश देते हैं। नागपुर का जैन संघ हर्षान्वित होकर अपने आपको धन्य मान रहा है। इधर सोमचंद्र मुनि की विद्वत्ता की सुवास भी चौतरफ फैलने लगी है। इसी नागपुर में धनदसेठ नाम के एक बहुत बड़े धनवान सेठ रहते थे। यशोदा नाम की गुणवती एवं शीलवती पत्नी थी। चार संस्कारी बेटे थे, धनद सेठ के। चारों बेटों की शादियाँ हो चुकी थी, उनके घर भी पुत्रों का जन्म हुआ था... यों धनद सेठ का परिवार बढ़ता जा रहा था। धनदसेठ के घर पर आया हुआ कोई अतिथि कभी खाली हाथ नहीं लौटता था। वे साधु-संतों की भी उचित सेवा करते थे। भक्ति करते थे। अनाथ-गरीबों को दयाभाव से भरपूर दान देते थे। इस तरह अपने पैसे का वे सदुपयोग करते थे। वे समझते थे कि लक्ष्मी चंचल है... धन-वैभव जाड़े की ढलती धूप से हैं... अभी हों अभी चले जाएँ! - उनका व्यापार लाखों रुपयों का था। - लाखों रुपये उन्होंने लोगों को दिये हुए थे। - लाखों रुपयों के हीरे-जवाहरात उन्होंने जमीन में गाड़ रखे थे। - लाखों रुपयों का सोना एवं चाँदी भी जमीन में गाड़ रखा था। वे समझते थे... 'जब संकट का समय आयेगा... तब यह सब काम लगेगा।' कुछ बरस आनन्द पूर्वक गुजरे... और धनद सेठ को व्यापार में बड़ा भारी नुकसान हुआ । लोगों को दिये हुए रुपये वापस नहीं आये... समुद्र में घूमते हुए जहाज खो गये... यशोदा सेठानी ने अपने सारे गहने सेठ को दे दिये। चार पुत्रवधुओं ने भी अपने-अपने अलंकार ससुरजी को सुपुर्द कर दिये और विनम्र शब्दों में निवेदन किया : For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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