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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सच्ची सुवर्णसिद्धि १३६ हेमचन्द्रसूरिजी के पास और तरह-तरह की योगशक्तियाँ थीं... मंत्र साधनाएँ थीं! वे आकाश में उड़ने को शक्तिमान थे। देव-देवी के उपद्रवों को शान्त करना उनके बाँये हाथ का खेल था! कैसी भी हठीली बीमारी दूर करना उनके लिए आसान था... पर लोहे को सोने में तबदील करने की शक्ति उनमें नहीं थी! दुनिया में, कुदरत के साम्राज्य में कुछ ऐसी वनस्पतियाँ हैं... जिनका रस लोहे के टुकडों पर छिड़का जाए तो लोहा सोना बन सकता है! __जब हेमचन्द्रसूरि छोटे थे... 'सोमचन्द्र' मुनि थे... तब उन्होंने अपने गुरुदेव देवचन्द्रसूरिजी से आग्रह कर के पूछा था... ___ 'गुरुदेव! क्या लोहे को सोने में बदलना शक्य है?' वैसी वनस्पतियाँ आज भी होती हैं क्या? या ये सारी बेसिर-पैर की बातें हैं?' तब गुरूदेव ने, एक दिन...रास्ते पर से गुजर रही एक औरत को देखा... उसके सिर पर लकड़ी का गठ्ठर था। वह गठ्ठर एक बेल-लता से बंधा था। तुरन्त गुरुदेव ने विश्वस्त श्रावक को भेजकर... वह बेल खरीदवाकर मँगवाई। श्रावक को कहकर बेल का रस निकलवाया। फिर लोहे के छोटे-छोटे टुकड़े मंगवाये । बेल के रस में कुछ औषधियों का मिश्रण करवाया और वह रस लोहे के टुकड़ों पर डाला। सोमचन्द्र मुनि सांस बाँधे हुए यह प्रयोग देख रहे थे। धीरे-धीरे वे लोहे के टुकड़े सोने में बदल गये! यही सुवर्णसिद्धि थी। ___ आज की रात वह पुरानी घटना हेमचन्द्रसूरिजी के दिल-दिमाग पर बारबार उभर रही थी। ___ यदि गुरुदेव कुमारपाल को 'सुवर्णसिद्धि' दे दें तो? कुमारपाल हजारों टन...लाखों टन सोना बना सकता है और फिर इस धरती पर एक भी इन्सान गरीबी या भूखमरी का शिकार नहीं होगा। ___ परन्तु गुरुदेव तो खंभात में बिराजते हैं। वे एकांतवास में रहते हैं। उग्र तपश्चर्या करते हैं। संघ का-शासन का कोई अति महत्त्वपूर्ण कार्य हो तो ही वे बाहर आते हैं....। क्या वे मेरी प्रार्थना से पाटन पधारना स्वीकार करेंगे? उन्हें तो राजनीति के छलप्रपंच तनिक भी पसंद नहीं। मेरी भी कुछ प्रवृत्तियाँ उन्हें अच्छी नहीं लगती, हालाँकि मेरी हर प्रवृत्ति जिनशासन की शान बढ़ाने के लिए ही होती है... पर गुरुदेव का अपना अलग दृष्टि कोण है। ठीक है, एक कोशिश करने में तो एतराज नहीं! वाग्भट्ट वगैरह मंत्री वर्ग को खंभात भेजूं विनति करने के लिए। यदि वे पधार जाएँ... मेरे पर व कुमारपाल पर प्रसन्न हो उठे... और सुवर्णसिद्धि का रहस्य बता दें तो बस । काम सफल हो जाए।' For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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