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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सटीक भविष्यवाणी ११७ इतने में महल में गुप्तचरों ने प्रवेश किया। महाराजा को प्रणाम करके निवेदन किया। 'महाराजा, हम राजा कर्ण की सेना में घुस गये थे। गत रात्रि में ही राजा कर्ण ने पाटन को घेर लेने का निर्णय कर लिया था, अतः उन्होंने रात्रि के प्रथम प्रहर में ही पाटन की ओर प्रयाण किया था। कर्ण अपने श्रेष्ठ हाथी पर बैठा हुआ था। हाथी तीव्र गति से चल रहा था। मध्य रात्रि के समय कर्ण राजा की आँख लग गई। और नींद ही नींद में एक वृक्ष की बड़ी डाली में उसके गले में रहा हुआ हार उलझ गया। हाथी तो चलता रहा... इधर कर्णराजा उस पेड़ की डाली पर लटक गये | उसका हार ही उसकी मौत का कारण हो गया। कर्णराजा की आकस्मिक मौत ने सभी को स्तब्ध कर दिया। पूरी सेना आगे कूच रोककर विषादमग्न होकर वहीं खड़ी हो गई। सेनापति ने डाली पर लटके हुए राजा के मृतदेह को नीचे उतारा | सभी सैनिकों ने राजा के शव को अंतिम सलामी दी। वहीं पर लकड़ियों की चिता रचाकर राजा के मृतदेह का अग्नि संस्कार कर दिया गया। सेना वापस लौट गई। राजा के बगैर सेना का जोशोहोश टूट जाना स्वाभाविक था। हम आपको समाचार देने के लिए यहाँ शीघ्र आये हैं।' समाचार सुनकर राजा कुमारपाल हक्का-बक्का सा रह गया। उसके मुँह से शब्द निकल पड़े... 'गुरुदेव का भविष्य कथन सच साबित हुआ । युद्ध का खतरा टल गया।' हालाँकि जिस तरह से कर्णराजा की मौत हुई... इससे कुमारपाल दुःखी हो उठे थे। जल्दी-जल्दी तैयार होकर कुमारपाल वाग्भट्ट को साथ लेकर उपाश्रय में पहुंचे। गुरुदेव को वंदना की। विनयपूर्वक गुरुदेव के चरणों में बैठकर राजा ने सैनिकों के द्वारा आये हुए समाचार कह सुनाये। फिर पूछा : 'गुरुदेव, क्या आपने अपने दिव्य ज्ञान में राजा कर्ण की इतनी खौफनाककरुण मृत्यु देख ली थी?' गुरुदेव के चेहरे पर हल्का सा स्मित उमट आया। हर एक सवाल का जवाब नहीं होता है। गुरुदेव खामोश रहे। उनकी खामोशी में भी गहराई थी। For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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