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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ सटीक भविष्यवाणी _ 'गुरूदेव, मेरे से तो ये वाग्भट्ट जैसे श्रेष्ठी ज्यादा पुण्यशाली और किस्मतवाले हैं, वे सुखपूर्वक संघयात्रा लेकर जब चाहे तब जा सकते हैं। यात्रा कर सकते हैं, करवा सकते हैं | संघपति का सेहरा पहन सकते हैं | एक मैं ही अभागा हूँ। गुरुदेव, मेरे शुभ मनोरथों का कोमल कल्पवृक्ष जलकर धुआँ-धुआँ हुआ जा रहा है।' कुमारपाल की आँखों में आँसू छलक आये। गुरूदेव ने आँखें खोली... कुमारपाल के सामने देखा । गुरु-शिष्य की निगाहें मिली। गुरुदेव ने मध्यम स्वर में कहा : 'कुमारपाल...स्वस्थ बन जाइये। तीर्थयात्रा के प्रयाण का मूहूर्त अभी ३६ घंटे दूर है। अपना संघ उसी मुहूर्त में प्रयाण करेगा । और इससे पहले आयी हुई विघ्न की बदली तितर-बितर हो जाएगी।' कमारपाल ने रूमाल से आँखें पोंछ ली। उन्हें गुरुदेव के वचन पर गहरी श्रद्धा थी। पूरी आस्था थी। गुरूदेव के वचन सुनकर उन्हें आश्चर्य हुआ। शोक दूर हो गया। द्विधा नष्ट हो गई। निराशा चली गई। परन्तु एक जिज्ञासा... कौतूहलभरी जिज्ञासा को मन-मस्तिष्क में दबाकर राजा और मंत्री महल पर लौट आये। 'कैसे दूर हो जाएगा यह विघ्न? गुरुदेव क्या चमत्कार करेंगे? क्या कर्ण राजा पीछे हट जाएगा? वापस चला जाएगा? गुरुदेव अपने योगबल से नया सैन्य बनाकर कर्ण का सामना करने के लिए भेजेंगे? कर्ण के विचारों में बदलाव आयेगा? गुरुदेव क्या करेंगे?' परन्तु गुरुदेव से पूछने का तो सवाल ही नहीं था। राह देखनी थी। बारह प्रहर...छत्तीस घंटे के भीतर ही विघ्न टल जाने का था। तब तक धर्म ध्यान करना था। संघप्रयाण की तैयारियाँ चालू रखनी थीं। आठ प्रहर बीत गये। प्रभात का समय था। महाराजा महल के झरोखे में बैठे थे। उनका स्वाध्याय चल रहा था। श्री हेमचन्द्रसूरिजी द्वारा संस्कृत भाषा में रचित श्री 'वीतराग स्तोत्र' एवं 'श्री महादेव स्तोत्र' इन दो स्तोत्रों के स्वाध्याय-पठन करने के पश्चात् ही दातून-कुल्ला करते थे। For Private And Personal Use Only
SR No.009634
Book TitleKalikal Sarvagya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size3 MB
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