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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है २०३ उसके लिये कैसी-कैसी बातें की है और कर रहा है, यह जानकर मुझे बहुत आश्चर्य हो रहा है। तेरे विषय में मेरी धारणायें भी गलत सिद्ध हुई। विश्वासभंग जैसा पाप तेरे जीवन में प्रविष्ट हो जायेगा अथवा पहले से होगा, यह मैं नहीं जानता था। तू शायद ऐसा मानता होगा कि 'अब मुझे उस मित्र की कोई आवश्यकता नहीं है...' मानता हूँ कि तुझे उसकी आवश्यकता नहीं रही होगी, परन्तु क्या मित्रता का सम्बन्ध आवश्यकता के साथ है? जब तक आवश्यकता हो तब तक ही मित्रता? क्या वह मित्रता होती है या स्वार्थ-साधकता? तूने मात्र अपना स्वार्थ देखा है। तू ऐसा मत मानना कि उसको तेरी कोई आवश्यकता है, तेरे बिना वह निराधार हो गया है! तेरे बिना उसको कोई नुकसान नहीं है। उसके बिना तुझे नुकसान होने की मुझे आशंका है! तू नहीं मानेगा, चूंकि तू वर्तमानकालीन अपनी सुदृढ़ स्थिति पर आश्वस्त हो गया है। तेरी बातों में कितना विरोधाभास है! तुझे याद है क्या कि जब तू पारिवारिक आपत्ति में फँसा था, तू उसके पास गया था शरण लेने! उसने अपने परिवार की नाराजगी होने पर भी तुझे सहयोग दिया था! तेरे लिये उसने अपने परिवार का त्याग कर दिया था! उसके महान त्याग पर तू रो पड़ा था... और मेरे सामने बोला था : 'कुछ भी हो जाय, दुनिया भले बदल जाय... परन्तु मैं जीवनपर्यंत उसका साथ नहीं छोटूंगा!' और वही तू क्या बोल रहा है? 'उसने मेरे लिये कोई त्याग नहीं किया था, मेरा तो मात्र निमित्त था, उसने अपने ही निजी कारणों से त्याग किया था... मैं उसकी आन्तरिक सारी बातें जानता हूँ!' ऐसा बोल रहा है न तू? क्या तेरी आन्तरिक बातें वह नहीं जानता है? फिर भी, मेरे सामने तेरे लिये एक भी बात नहीं की है उसने। दूसरों के सामने तो ऐसी बातें करेगा ही कैसे? ___ उपकारी के उपकारों को भूल जाना, उपकारी के प्रति अपकार करना... क्या मुमुक्षुता का लक्षण है? मानवता का लक्षण है? तू क्या कर रहा है... एकान्त में शान्त चित्त से सोचेगा क्या? ऐसे मित्र का विश्वासघात करना, बड़ा पाप है। इस पाप का फल, भविष्य के जन्मों में तो मिलने वाला होगा वह मिलेगा, परन्तु वर्तमानकालीन जन्म में भी मिलेगा। तू अविश्वनीय बन जायेगा। तू किसी का भी विश्वासपात्र नहीं रहेगा। For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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