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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है २०२ ® विश्वासभंग सबसे बड़ा पाप है। @ आवश्यकता समाप्त हो जाने पर किसी से नाता तोड़ देना या मुँह मोड़ लेना, यह स्वार्थ नहीं है तो क्या है? ® जिंदगी में किसी की विश्वसनीयता को सहेजकर रखना, सम्हाल कर रखना भी बहुत बड़ी तपश्चर्या है! ® अपनी गलतियों को ढंकने के लिये औरों की गलतियों को उद्घाटित करना दुर्जनता है। • छोटी सी जिंदगी में क्या समझदारी, समता और सहिष्णुता के फूलों को खिलाकर नहीं जी सकते? ® परपीड़न में आनन्द महसूस करना', बहुत बड़ी विकृति है। घिनौनी एवं गंदी मनोवृत्ति है। पत्र : ४८ प्रिय मुमुक्षु, धर्मलाभ, ___ तेरा पत्र नहीं मिला है, लिखा हो तो मिले न! अब, दोनों पत्र का प्रत्युत्तर साथ ही लिखना। तेरा मित्र यहाँ आया था, थोड़े दिन मेरे पास रहा, उसने अपनी बहुत सी आन्तरिक बातें कहीं। सुनते-सुनते कभी खुशी, कभी उद्वेग, कभी आश्चर्य और कभी विषाद उभर आया। तेरे लिये अनेक विचार मेरे मन में उभरते रहे। तू जानता है कि उसने तेरे साथ कैसा अभेद भाव से संबंध रखा? तुम्हारी मित्रता कैसी अदभुत है? एक दृष्टि से देखा जाय तो तेरे ऊपर उसके अनेक उपकार हैं। तूने स्वयं अपने मुँह से उसके उपकार गाये हैं, याद है न? जबजब तेरे जीवन में मुसीबतें आयी तू उसके पास गया है और उसने अपने सुखदुःख की चिन्ता किये बिना तुझे सहयोग दिया है। उसने तेरे साथ कोई परदा नहीं रखा है। __परन्तु तूने क्या किया? बाह्य व्यवहार की बात नहीं करता, बाह्य व्यवहार तो तूने अच्छा ही रखा है, मैं जानता हूँ, परन्तु अपने दूसरे मित्रों के आगे तूने For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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