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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है २०४ ___ मैं जानता हूँ कि इस पत्र से तू नाराज होगा, रोषायमान होगा और मेरी बातों का इन्कार करेगा | तूने अपनी गलतियों को स्वीकार करना सीखा ही नहीं है। तू हमेशा दूसरों की गलतियाँ देखता रहा है, दूसरों के दूषण देखना, दूसरों के गुप्त रहस्यों को जानना और स्वरक्षा के लिए उसका उपयोग करना... तेरे स्वभाव में भरा है। __मैं जानता हूँ कि तेरा मेरे प्रति स्नेह है, आदर है, भक्ति है, इसलिये इतना कटु सत्य लिख रहा हूँ। तुम्हारे प्रति मैं अपना एक कर्तव्य समझ कर लिख रहा हूँ | तू जानता है कि मैं निष्प्रयोजन और फालतू बातें करता ही नहीं हूँ| न मुझे तुम से कोई स्वार्थ है। तू मेरे प्रति नाराज हो जायेगा, तो भी मुझे गम नहीं होगा। कटु सत्य बहुत थोड़े जीवों को ही प्रिय लगता है। ___ मैं यह भी जान चुका हूँ कि तु उस निर्मल मैत्री को तोड़ने के लिये क्यों तत्पर बना है! अब उस मित्र से दूर रहना क्यों पसन्द करता है। तू उससे दूर रहे, उसकी मुझे चिंता नहीं है। परंतु तू उसका द्रोही बने, यह बात क्षम्य नहीं है। उसने तेरा कुछ भी बिगाड़ा नहीं है, तेरे प्रति कोई दुर्भावना नहीं की है, और तू उसके प्रति दुर्भावना रखता है, यह बात अच्छी नहीं है। एक बात तू समझ लेना कि तू उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकेगा। जब तक मनुष्य का पुण्योदय होता है, उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। जब मनुष्य का पापोदय होता है, उसका कोई कुछ सुधार नहीं सकता। तू अपनी गलतियों को ढकने के लिये, उसकी गलतियों को प्रकाशित करने की गलत प्रवृत्ति कर रहा है, यह बहुत बड़ी दुर्जनता है। अपने कुछ श्रीमन्त मित्रों के सहारे और कुछ २५/५० हजार रुपयों की कमाई के बल पर, तू अपने आपको निश्चित और निर्भय मानकर चल रहा है, यह मैं जानता हूँ। क्या ऐसा नहीं होगा कि वे मित्र कभी तेरे साथ विश्वासघात करें? 'एक्शन-रिएक्शन' का नियम तो तू जानता है न? तूने विश्वासघात किया है, तो तेरे साथ विश्वासघात होगा! उस समय तू कहाँ जायेगा? क्या करेगा? बाह्य तप-त्याग और दूसरी धर्मक्रियायें क्या तुझे विश्वासघात का लायसेंस देती हैं? 'मैं तप करता हूँ, मैं त्याग करता हूँ, मैं अच्छी तत्त्वचर्चा करता हूँ... मैं धर्मक्रियायें करता हूँ... इसलिये मैं विश्वासघात करूँ तो भी मुझे पाप नहीं लगता!' ऐसा मान लिया है क्या? For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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