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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७४ २० परमात्मा को स्पर्श करनेवाली यानी जिस किसी वस्तु का परमात्मा से स्पर्श होता है, वह वस्तु प्रभावशाली बन जाती है। यह मात्र कवि की कल्पना नहीं है...वास्तविक बात है। देद श्रावक की निर्मल बुद्धि ने इस वास्तविकता को पहचान लिया था। मात्र पहचान नहीं लिया था, गहरी निष्ठा थी। वह निष्ठा ही उसके मन में ये भाव पैदा करती है न? उसने क्या कहा भगवान् से? 'आपकी शक्ति के सहारे ही मैंने राजा के सामने जिद्द कर ली है... स्वर्णसिद्धि नहीं बताने की ।' राजा ने देद को कारावास में बंद कर दिया था, फिर भी देद की निष्ठा विचलित नहीं हुई थी! उसने ऐसा नहीं सोचा था कि 'प्रभो, मैं आपका भक्त हूँ और आपने मुझे बचाया नहीं? आपने मेरी रक्षा नहीं की, आपके प्रति मेरी श्रद्धा कैसे रहेगी?' निष्ठाहीन मनुष्य ही ऐसे विचार करता है। निष्ठावान् मनुष्य कभी भी, कैसी भी विकट परिस्थिति पैदा होने पर भी, श्रद्धा से विचलित नहीं होता है। भगवान स्तंभन पार्श्वनाथ के साथ देद श्रावक इतने गहरे संबंध में था... इतना भाव-नैकट्य उसने प्राप्त किया था, कि उसने भगवान् को कह दिया : मुझे यहाँ से मुक्त करोगे, तो मैं आपके सभी अंगों की स्वर्ण के आभूषणों से पूजा करूँगा! __'ऐसी मनौती करनी चाहिए क्या?' ऐसा मत पूछना। यह कोई मनौती नहीं थी, यह तो था भक्त और भगवान् के बीच का 'प्राइवेट' वार्तालाप! निजी बात थी यह... 'पर्सनल मैटर' था! 'पर्सनल मैटर' को 'जनरल मैटर' नहीं बनाना चाहिए। हाँ, आप परमात्मतत्त्व से इतना भाव-नैकट्य प्राप्त कर लें फिर आप भी परमात्मा से ऐसी बात कर सकते हैं! परन्तु याद रखना, परमात्मा की आज्ञा भी आपको उसी तरह माननी होगी! देद श्रावक ने परमात्मा की आज्ञाओं का कैसा अद्भुत पालन किया है-वह आप जानते हैं क्या? जान लेना। देद श्रावक, परमात्मा स्तंभन पार्श्वनाथ की शरण में निश्चित और निर्भय बन गया। स्वस्थ चित्त से उसने 'उवसग्गहरं' स्तोत्र का पुनः पुनः ध्यान किया। स्तोत्र के एक-एक शब्द पर और अर्थ पर उसने ध्यान किया। ___ श्रद्धा, प्रज्ञा और निष्ठा से ही मनुष्य निश्चित और निर्भय हो सकता है। निश्चित और निर्भय मनुष्य ही ध्यान कर सकता है। देद के मन में नहीं आता है पत्नी का विचार, नहीं आता है राजा का विचार और नहीं आता है अपने भविष्य का विचार! वह तो 'उवसग्गहरं स्तोत्र' में मग्न हो गया...और उसी मगनता में उसको नींद आ गई। For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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