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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रवचन- ७४ और चमत्कार हो गया : www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१ रात्रि के चतुर्थ प्रहर में जब गहन अन्धकार था, देद निद्रा से जगा । उसने एक अद्भुत घटना देखी ! अपने पास खड़े हुए एक सैनिक को देखा । वह सर पर लाल रंग के रत्नों से खचित स्वर्ण मुकुट पहना हुआ था । उस मुकुट के प्रकाश में सुभट की आकृति दिखाई देती थी । उसकी छाती विशाल थी। उसकी दोनों भुजाएँ बलिष्ठ और जानू तक दीर्घ थीं। उसके शरीर पर श्याम वर्ण का लोह-कवच था । वह सुभट, स्वर्ण के अलंकारों से सुशोभित अश्व पर आरूढ़ था । सुभट ने देद से कहा : 'देद तू खड़ा हो जा और मेरे पीछे अश्व पर बैठ जा ।' देद ने कहा : ‘मैं लोहे के बंधनों में जकड़ा हुआ हूँ...मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूँ...मुझे क्षमा करें ।' सुभट ने कहा : 'तू क्या कर सकता है? मैं कहता हूँ तू खड़ा हो जा !’ सुभट के दिव्य शब्दों से देद उत्साहित हुआ और खड़ा हो गया। लोहे की बेड़ियाँ टूट गईं और वह घोड़े पर बैठ गया । सुभट ने अश्व को वहाँ से दौड़ाया। अश्व दौड़ता ही रहा...उस जंगल में जा पहुँचा जहाँ कि देद की पत्नी विमलश्री छिप कर रह रही थी । विमलश्री ने देद को देखा... देद ने विमलश्री को देखी...परन्तु वह अश्वारोही अद्रश्य हो गया था...! देद ने रोमांचित तन-मन से भगवान् स्तंभन पार्श्वनाथ भगवंत की स्तवना की। विमलश्री ने अपनी सारी बात देद को कही, देद ने अपनी कहानी विमलश्री को सुना दी। दोनों ने वहाँ से विद्यापुर नगर की ओर प्रयाण कर दिया । For Private And Personal Use Only यह तो हुई प्रासंगिक बात । प्रस्तुत विषय है उचित लोकयात्रा का । लोकयात्रा में, लोगों के मन को, विचारों को जान कर, लोग नाराज न हों. वैसा व्यवहार करना है। गृहस्थ जीवन में यह सामान्य धर्म विशेष महत्त्व रखता है। आज इस विषय को अधूरा छोड़ता हूँ, कल इसी विषय पर आगे विवेचन करूँगा । आज बस, इतना ही ।
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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