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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७४ १९ देद श्रद्धावान् था, प्रज्ञावान् था और निष्ठावान् था। जीवन में कल्पना से बाहर का संकट आया...फिर भी वह नाहिम्मत नहीं हुआ | उसने परमात्मा की शरण स्वीकार कर ली। जिनका सहारा लेना हो, उनकी शरण में तो जाना ही पड़ेगा। बिना शरण लिये, सहारा नहीं मिल सकता। देद अच्छी तरह इस बात को जानता था, इसलिए सर्वप्रथम उसने पार्श्वनाथ भगवंत की शरण ले ली... सच्चे हृदय से, विशुद्ध भाव से | परमात्मा के नाम से हर काम होता है : वह प्रज्ञावान था। निर्मल बुद्धि प्रज्ञा कहलाती है। कुशाग्र बुद्धि प्रज्ञा कहलाती है। उसने अपनी प्रज्ञा से निर्णय किया था कि 'परमात्मा के नाम में अपूर्व प्रभाव रहा हुआ है!' बात कितनी सत्य है! उपाध्याय श्री यशोविजयजी ने भी कहा है : 'करत कष्ट जन बहुत हमारे नाम तिहारो आधारा! 'जस' कहे जनम-मरण भय भांज्यो तुम नामे भवपारा! शीतल जिन मोहे प्यारा...' परमात्मा के नाम में अपूर्व प्रभाव रहा हुआ है-यह बात निर्मल प्रज्ञा से ही समझी जा सकती है। देद श्रावक ने दूसरा निर्णय किया था कि 'परमात्मा की मूर्ति का पाषाण भी प्रभावशाली होता है।' पहाड़ का पाषाण और प्रतिमा का पाषाण-दोनों में कितना अन्तर है वह जानते हो? एक 'नोट-बुक' का कागज दूसरा 'करन्सी नोट' का कागज - दोनों में कितना अन्तर होता है, वह तो जानते हो न? इससे भी बहुत ज्यादा अन्तर दो पाषाणों के बीच होता है। आप लोगों ने इस विषय में कभी चिन्तन किया है क्या? निर्मल बुद्धि से ऐसा चिन्तन हो सकता है। ___ परमात्मा की मूर्ति पर गिरा हुआ पानी और चढ़े हुए पुष्प भी प्रभावशाली बन जाते हैं! उस पानी और पुष्प में गुणात्मक परिवर्तन आ जाता है। वो गुणात्मक परिवर्तन होता है भक्त मनुष्य के भक्तिसभर शुभ भावों से। शुभअशुभ भावों का असर कितना गजब का होता है, वो तो अब वैज्ञानिक भी समझने लगे हैं। वैज्ञानिक तो समझ रहे हैं... आप लोग कब और कैसे समझेंगे? For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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