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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-८५ १३२ अच्छा ज्ञान हो तो ही 'जिनवचन' की वह सुन्दर व्याख्या कर सकता है। यदि इन विषयों का ज्ञान नहीं होता है उपदेशक के पास, तो संभव है कि वह जिनवचन से विपरीत व्याख्यान भी दे दे | धर्मोपदेशक बनना कोई इतना सरल तो नहीं है! ८. जिस विषय का प्रतिपादन करना हो, जिस घटना का वर्णन करना हो, उस विषय का, उस घटना का सर्वांगीण वर्णन करने में उपदेशक कुशल होना चाहिए। उसके पास शब्द-समृद्धि के साथ-साथ वर्णन करने की भी शैली होनी चाहिए | तभी श्रोताओं को वह रसलीन कर सकता है। जिस विषय का विवेचन चलता हो, उसमें सभी बहने चाहिए। जिस प्रसंग का वर्णन चलता हो, उसमें सभा तदाकार बननी चाहिए | उपदेशक की प्रतिभा भी चमकती है। वीर-रस की बात चलती हो तो सभा में वीर रस उछलने लगे! शान्त-रस की घटना का वर्णन चलता हो तब श्रोताओं के मुँह पर शान्ति की आभा छा जाय! वैराग्य-रस से भरपूर कोई कहानी चलती हो तब श्रोतावर्ग का हृदय विरक्ति का अनुभव करे! हास्यरस की बात आये तब सभी खिल-खिलाकर हँस दें! ९. नौंवी बात है श्रोताओं के प्रति व्यंग्य नहीं कसने की। उपदेशक को एक बात नहीं भूलनी चाहिए कि वह धर्म का उपदेशक है। धर्म के उपदेश में व्यंग्य नहीं होना चाहिए | व्यंग्य कसने से श्रोताओं के हृदय को ठेस पहुँचती है। इसलिए कहा है कि व्यंग्यात्मक भाषा में उपदेश नहीं देना चाहिए | परन्तु वह बात व्यक्ति को लेकर समझना। समष्टि को लेकर कभी व्यंग्यात्मक बोला भी जा सकता है। सामाजिक और राजकीय समीक्षा करते समय व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग किया जा सकता है। १०. उपदेश लोगों के मन को प्रसन्न करनेवाला चाहिए। मन को रुचिकर होना चाहिए उपदेश | इसलिए तो 'आक्षेपणी' और 'विक्षेपणी' देशना देने का विधान किया गया है। सभा को अपनी ओर अभिमुख करने के लिए उपदेशक शृंगार रस को भी बहा सकता है। श्रोताओं का मनोरंजन होने पर ही वे वक्ता के अभिमुख हो सकते हैं। यदि 'बोर' हो गये... तो उठकर रवाना हो जायेंगे! मनोरंजन मात्र मनोरंजन के लिए नहीं करना है, मनोरंजन करके श्रोताओं को अभिमुख बनाकर धर्म की गंभीर बातें उनके हृदय तक पहुँचानी होती हैं। मनोरंजन भी सात्त्विक करना चाहिए। निम्नस्तर की 'सेक्सी' या हिंसाप्रेरक कहानियाँ कहकर मनोरंजन नहीं करना चाहिए। निम्नस्तर का हास्यरस भी काम का नहीं। धर्मोपदेशक स्वयं यदि साधु है, मुनि है, आचार्य है... तो For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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