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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३३ प्रवचन-८५ उसको अपने धार्मिक जीवन की गरिमा का खयाल होना ही चाहिए | व्याख्यान सभा में महिलाएँ भी होती हैं, इसलिए मनोरंजन का स्तर ऊँचा रहना चाहिए | सदगुरु के मुँह से श्रोताओं को सात्त्विक बातें ही सुनने को मिलनी चाहिए। दूसरी बात यह है कि सम्पूर्ण व्याख्यान मनोरंजन का नहीं होना चाहिए | मनोरंजन तो 'आटे में नमक' जितना ही होना चाहिए। श्रोता 'बोर' नहीं हो जाय, इसलिए बीच-बीच में २-३ मिनट मनोरंजनात्मकता आनी चाहिए। ११. ग्यारहवीं बात है व्याख्यान सभा को सम्मोहित करने की प्रतिभा की। धर्मोपदेशक में वैसी प्रतिभा होनी चाहिए कि हजारों लोगों की सभा उसके प्रति आकर्षित हो जाय | हालाँकि ऐसी प्रतिभा सभी उपदेशकों में नहीं हो सकती है। हजार में दो-चार ही ऐसे होते हैं। ऐसी प्रतिभा का जन्म विशिष्ट पुण्यकर्म से ही होता है। जिसको 'गॉडगिफ्ट' कहते हैं, वैसी यह प्रतिभा होती है। ____१२. बारहवीं विशेषता बतायी गई है, अहंकाररहित होने की। हजारों-लाखों लोगों की सभा को सम्मोहित करनेवाला उपदेशक अहंकाररहित होना चाहिए। अभिमान तनिक भी नहीं होना चाहिए। ज्ञानी और अभिमानी? यह तो दीपक होते हुए अंधकार जैसी बात होगी। ज्ञान सूर्य जैसा है और अभिमान-अहंकार अंधकार जैसा है। सूर्य की उपस्थिति में अंधकार टिक ही नहीं सकता है! अपने उपदेश से हजारों को मंत्रमुग्ध करनेवाला वक्ता तो इतना विनम्र होना चाहिए कि एक छोटा बच्चा भी निर्भयता से उसके पास जाकर प्रेम से बात कर सकें | उपदेशक का यह गुण श्रोताओं के हृदय में धर्मभावना को दृढ़ बनाता है। १३. तेरहवाँ गुण बताया है धर्माचरण का। धर्म के उपदेशक का जीवन धार्मिक होना चाहिए। लोगों को धर्म का उपदेश देनेवाला मनुष्य यदि स्वयं धर्म को जीवन में नहीं जीयेगा तो उसके उपदेश का दूसरों पर क्या असर होगा? वक्ता है कि बकता है? अंग्रेजों का जब भारत पर राज्य था उस समय की बात है। गुजरात में बड़ौदा बड़ा स्टेट था। महाराजा सयाजीराव सज्जन राजा थे। बड़ौदा में एक बड़ी सभा हुई थी जीवदया के विषय में । प्रमुख थे महाराजा सयाजीराव और वक्ता थे बम्बई के एक बड़े जीवदया-प्रेमी महानुभाव! गरमी के दिन थे, स्टेज पर पंखे नहीं थे। औपचारिकता समाप्त होने पर, मुख्य वक्ता भाषण देने खड़े For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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