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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ८५ १३१ व्याख्यान सभाओं में श्रोता भी अनेक प्रकार के होते हैं न? कुछ श्रोता पढ़ेलिखे एवं बुद्धिमान् होते हैं। कुछ श्रोता बुद्धिमान् होते हैं, पर धर्मशास्त्रों का ज्ञान नहीं होता है। कुछ श्रोता अल्प बुद्धिवाले भी होते हैं और दो-चार नींद निकालने के लिए ही आते हैं। संदेह - शंका - जिज्ञासा उसको होगी कि जो बुद्धिमान् होते हैं। कुछ ज्यादा बुद्धिमान् (Overwise) कुतर्क भी करते हैं ... ! इन सबकी जिज्ञासाओं का समाधान करने की क्षमता धर्मोपदेशक में होनी चाहिए। यदि वह शंका - संदेहों का निराकरण नहीं कर सकता है तो श्रोताओं के हृदय में धर्म की स्थापना नहीं कर सकता है। सभा में से : कुछ व्याख्याता तो ऐसे देखे हैं कि प्रश्न पूछने पर क्रोधित हो जाते हैं...! महाराजश्री : आपका प्रश्न पूछने का ढंग बराबर नहीं होगा ! अथवा उस व्याख्याता को प्रश्न का उत्तर मालूम नहीं होगा! अथवा प्रश्न पूछने का समय अनुकूल नहीं होगा! हाँ, कुछ लोग यानी श्रोता ऐसे भी होते हैं कि व्याख्याता साधु की परीक्षा लेने के लिए प्रश्न पूछते हैं । जिज्ञासा नहीं होती है... परीक्षा लेने की वृत्ति होती है। ऐसे लोगों को भी, उपदेशक इस प्रकार प्रत्युत्तर दे कि उनको अपनी गलती महसूस हो। ७. श्रोताओं की शंकाओं का समाधान तभी वक्ता कर सकता है, जब उसको मात्र स्वधर्म के शास्त्रों का ही बोध नहीं, अन्य धर्मग्रन्थों का भी ज्ञान हो ! वर्तमान में प्रचलित विभिन्न धर्मविषयक विचारधाराओं का अध्ययन होना चाहिए | जिस समय भारत में जैन, बौद्ध और वेदान्त की विचारधाराओं में टकराव था, सभाओं में- राजसभाओं में वाद-विवाद होते थे... उस समय हर धर्मोपदेशक को तीनों धर्म के शास्त्रों का गंभीर अध्ययन करना पड़ता था । जैसे अच्छे वकील को कई देशों के कानूनों का अध्ययन करना पड़ता है, भिन्न-भिन्न हाईकोर्ट के अनेक फैसलों का ज्ञान प्राप्त करना होता है, वैसे धर्मोपदेशक को विभिन्न धर्मों के ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त करना ही चाहिए। मात्र अध्ययन नहीं, तुलनात्मक अध्ययन होना चाहिए । धर्मोपदेशक के पास जैन धर्म के सिद्धान्तों का भी पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। सात नय, सात भंग, अनेकान्तवाद, द्रव्य-गुण- पर्याय, नव तत्त्व, चौदह गुणस्थानक, योग की आठ दृष्टि, जापपद्धति, ध्यान पद्धति... वगैरह ज्ञान होना चाहिए। उत्सर्ग और अपवाद का भी यथोचित ज्ञान होना चाहिए । निश्चय और व्यवहार का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिए। इन सब विषयों का For Private And Personal Use Only
SR No.009632
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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