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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ प्रवचन-५५ पन्द्रह वर्ष पहले यह मेरा बंगला था । मैं यहाँ मेरे वृद्ध पिता के साथ रहती थी। मेरे पिता ने ही मुझे पाला-पोषा, बड़ा किया और पढ़ाया। मेरे बड़े होने के बाद मेरे पिताजी की मृत्यु हो गई। मैं असहाय हो गई। गुजारे का प्रबन्ध करने के लिए मैं इस बंगले को किराये पर देने लगी। और ज्यूरी का प्रेत खामोश हो गया : पहला किरायेदार आप जैसा ही पुलिस अफसर था। उससे मेरी घनिष्ठता बढ़ी। हम दोनों ने शादी करने का सोचा । हम दोनों में पति-पत्नी के सम्बन्ध भी स्थापित हो गया। मैंने अपनी सारी जिम्मेदारियाँ उस अफसर पर छोड़ दीं। परन्तु जब मैं गर्भवती हुई, मैंने उससे अपनी स्थिति स्पष्ट करके, कानून की निगाह में पति-पत्नी बन जाने के लिए कहा तो वह इनकार कर गया। जब मैंने दबाव डाला तब उसने मेरी हत्या कर दी। इतना कहकर ज्यूरी का प्रेत चूप हो गया। फिर बोला : 'आप उस अपराधी को गिरफ्तार कर सजा दिलवाइये । परन्तु आप अपराध सिद्ध करने के प्रमाण कहाँ से लायेंगे? आप इसी असमंजस में हैं न? चिन्ता नहीं करें, मैं सारे प्रमाण उपलब्ध करा दूंगी। जब तक अपराधी को सजा नहीं मिलेगी तब तक मेरी आत्मा इसी प्रकार भटकती रहेगी और इस बंगले में आनेवाले किसी व्यक्ति को चैन से नहीं रहने देगी! आप अच्छी तरह विचार कर निर्णय करना, मैं कल फिर इसी समय आऊँगी।' - इसके बाद उस युवती का रूप एकदम बदल गया। उसका चेहरा पूरी तरह विकृत हो गया । एक चुडैल जैसी आकृति उभर आई। कुछ देर बाद वह आकृति भी लुप्त हो गई। डिक्सन ने ज्यूरी की हत्या की जाँच करने का निर्णय कर लिया। ज्यूरी की आत्मा ने उसका उस प्रकार मार्गदर्शन किया, जिस प्रकार कोई प्रत्यक्षदर्शी व्यक्ति कर रहा हो! ज्यूरी की लाश के अवशेष बरामद किये गये। उसके हत्यारे प्रेमी को खोज लिया गया, उसे गिरफ्तार किया गया और सजा भी मिल गई। इसके बाद ज्यूरी के प्रेत ने डिक्सन को खूब धन्यवाद दिये और अनेक उपहार दिया! भूतहा बंगला : कई बार ऐसा होता है कि निमित्त-परीक्षा सही नहीं होने के कारण मकान अच्छा होने पर भी लोग शंका करते हैं! और एक बार शंका होने के बाद वह For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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