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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५५ ७३ शंका जल्दी दूर नहीं होती है। पूना-बंबई रोड़ पर एक गाँव है, वहाँ रोड़ पर ही एक बंगला है। लोग उसको 'भूतहा बंगला' कहते हैं। जब से बंगला बना तब से शंका हो गई कि 'इस बंगले में भूत रहता है!' बंगला बनानेवाला रहने ही नहीं आया! हमारा स्वानुभव : ___ एक बार हम लोग अपने आचार्यदेव के साथ विहार करते-करते वहाँ पहुँचे। हम करीबन् ५० साधु थे। रात्रि-निवास के लिए बड़ा मकान चाहिए था। हमने वह भूतहा बंगला देखा | उसके चौकीदार से पूछा : 'भाई, हम लोग क्या इस मकान में रात्रि व्यतीत कर सकते हैं? सुबह तो हम लोग चले जायेंगे।' चौकीदार ने कहा : 'महाराज, यह भूतहा बंगला है! इसमें तो बंगले का मालिक भी रात में नहीं रहता है! चूँकि रात्रि में भूत दिखाई देता है!' चौकीदार की बात सुनकर मुझे मज़ा आ गया! मैंने कहा : 'भाई, तब तो तू हमें इजाज़त दे, ताकि हम भूत को देख सकें! हमने कभी भूत देखा नहीं है।' तब उसने कहा : 'महाराज, ठहरना हो तो ठहरो, परन्तु कुछ हो जाय तो मेरी जिम्मेदारी नहीं रहेगी!' हमने कहा : 'तुम निश्चिंत रहो, हमें कुछ भी होनेवाला नहीं है! भूत होगा तो भी चला जायेगा!' इजाज़त मिल गई। बंगला खुल गया। चौकीदार ने बंगला साफ कर दिया। हम ऊपर ही पहली मंजिल पर ठहरे | किसी साधु को हमने भूत की बात नहीं बताई, केवल हमारे आचार्यदेव को बताई। उन्होंने कहा : 'चिन्ता नहीं करना, परन्तु दो-दो साधु जगते रहना।' हमने आज्ञा स्वीकार की और हम दो साधु बारह बजे तक जगते रहे | सब साधु सो गये थे। संभवतः पूर्णिमा की रात थी, बंगले पर चन्द्र का प्रकाश गिर रहा था। न तो भूत आया, न हमने भूत देखा! : उस बंगले के चार दरवाजे थे। चौकीदार ने हमको एक दरवाजा बताकर कहा था कि 'इस तरफ ध्यान रखना ।' हम उस तरफ ध्यान रखते बैठे थे। करीबन एक बजे उस दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। फिर कोई नीचे का दरवाजा खोलने की कोशिश करता हो, वैसी आवाज आने लगी। हम दोनों साधु खड़े हुए और धीरे-धीरे उस सीढ़ी के पास पहुँचे। नीचे के द्वार पर खटखट की आवाज आ रही थी। धीरे-धीरे हम नीचे उतरे। दरवाजे की चिटकनी खुली थी, हमने बंद कर दी। दरवाजा बिल्कुल बन्द हो गया। हम For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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