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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१ प्रवचन-५३ श्री आर्य सुहस्ति को बात की। भिखारी ने भी आचार्यदेव को भाव से वंदना की और भोजन की याचना की। आचार्य श्री आर्य सुहस्ति विशिष्ट कोटि के ज्ञानी पुरुष थे। उन्होंने भिखारी की शक्ल देखी....। ज्ञानदृष्टि से उसके भीतर देखा । कुछ क्षण सोचा और भिखारी से कहा : 'महानुभाव, तुझे हम भोजन तो करा सकते हैं परन्तु तुझे हमारे जैसा बनना होगा! तू यदि हमारे जैसा साधु बन जाय तो हम भोजन करा सकते हैं।' भिखारी क्षुधा से व्याकुल था । क्षुधा से व्याकुल व्यक्ति क्या करने को तैयार नहीं होता? भिखारी तैयार हो गया साधु बनने को! उसको तो भोजन से मतलब था! और कपड़े भी अच्छे ही मिल रहे थे! भिखारी के कपड़ों से तो साधु के कपड़े अच्छे ही होते हैं! ___ ज्यों उसने साधु बनना स्वीकार किया, तुरन्त ही साधुओं ने उसका वेशपरिवर्तन किया, उसको दीक्षा दी और भोजन करने बिठा दिया! जिनाज्ञा के मुताबिक दीक्षा दी जाती है : सभा में से : इस प्रकार भिखारी को दीक्षा दी जा सकती है क्या? महाराजश्री : दीक्षा देनेवाले पर यह बात निर्भर रहती है। इस भिखारी की आत्मा को परखने वाले थे आर्य सुहस्ति जैसे विशिष्ट ज्ञानी महापुरुष! भिखारी का भविष्य देखने की क्षमता थी उस महापुरुष में। जिसमें ऐसी क्षमता न हो, दीक्षा लेनेवाले की योग्यता-अयोग्यता परखने की शक्ति न हो वैसे साधु इस प्रकार भिखारी को तो क्या आपको भी दीक्षा नहीं दे सकते। दीक्षा लेनेवाले की सोलह प्रकार की योग्यता देखने की होती है। आप श्रीमन्त हो, इससे आप योग्य नहीं बन जाते और कोई भिखारी है, इससे वह अयोग्य नहीं बन जाता। और दीक्षा जैसे कार्य में अनुकरण तो किया ही नहीं जा सकता। 'आर्य सुहस्ति ने भिखारी को दीक्षा दी थी इसलिए मैं भी भिखारी को दीक्षा दे सकता हूँ....!' ऐसा अन्धानुकरण नहीं किया जा सकता है। जिनाज्ञा के अनुसार ही दीक्षा दी जानी चाहिए। साधुओं ने उस नये साधु को पेट भर के भोजन खिलाया। भिखारी ने कुछ ज्यादा ही भोजन कर लिया था। शाम को उसके पेट में दर्द शुरू हुआ। दर्द बढ़ता गया। प्रतिक्रमण की क्रिया के बाद तो दर्द काफी बढ़ गया । आचार्यश्री आर्य सुहस्ति और सभी साधु उस नये मुनि के पास बैठ गये और नमस्कार महामंत्र सुनाने लगे। प्रतिक्रमण करने आये हुए श्रावक भी नये मुनिराज की For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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