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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५३ सेवा करने लगे। बड़े बड़े व्यापारी थे उसमें | नये मुनि ने यह सब सेवा-भक्ति देखकर सोचा अपने मन में : 'मैं तो खाने के लिये साधु बना, तो भी ये बड़े बड़े लोग मेरी सेवा करते हैं....कल तक जिन्होंने मेरे सामने देखा तक नहीं था, आज वे मेरे पार दबा रहे हैं! और, आचार्यदेव! कितनी करुणा है उनकी? मेरा परलोक सुधारने के लिए, मेरे पास बैठकर मेरा सर सहला रहे हैं और कैसी समाधि दे रहे हैं! यदि मैं सच्चे भाव से साधु बनता तो....' साधुधर्म की अनुमोदना करता और नवकारमंत्र का स्मरण-करता करता वह मरा और महान् अशोक के पुत्र कुणाल की रानी की कुक्षि में जन्म लिया! कृतज्ञता की कोख में पलता है समर्पणभाव : अब आप समझ गये होंगे कि आधे दिन के साधुजीवन में उसको साधुजीवन के नियमों का ज्ञान कितना हो सकता है? साधु अपने पास संपत्ति रख सकते हैं या नहीं, इस बात का ज्ञान उसे नहीं था। इसलिए अब वह संप्रति राजा बना है, उसको पता नहीं है कि साधु राज्य ले सकते हैं या नहीं? दूसरी बात यह है कि जब उसको पूर्वजन्म की स्मृति हो आयी, वह गुरुमहाराज को पहचान गया, उसके हृदय में इतना आनन्द उभर आया कि वह सोच ही नहीं सका कि राज्य गुरुदेव को देना चाहिए या नहीं! उसके हृदय में उत्कृष्ट समर्पणभाव पैदा हो गया था! कृतज्ञता-गुण में से समर्पणभाव का जन्म होता है! जिनकी कृपा से, जिनके अनुग्रह से मुझे राज्य मिला है, उनके ही चरणों में राज्य समर्पित कर दूँ....! यह था कृतज्ञता-गुण का आविर्भाव! आचार्यश्री आर्य सुहस्ति ने सम्राट संप्रति को जैनधर्म का ज्ञाता बनाया, आराधक बनाया और महान् प्रभावक बनाया। संप्रति ने अपने जीवनकाल में सवा लाख जिनमंदिर भारत में बनवाये। सवा करोड़ जिनमूर्तियाँ बनवाईं! अहिंसा का प्रसार-प्रचार किया। कृतज्ञता-गुण किसको कहते हैं, आप लोग समझ गये न? ऐसे गुण जिस महानुभाव में दिखें, आप उनके साथ गाढ़ मैत्री स्थापित करो। सौजन्य, दाक्षिण्य, कृतज्ञता आदि गुणवाले महानुभावों के साथ बैठो, फिरो और उनसे अच्छी अच्छी बातें सुनो। गृहस्थ जीवन में यह बात बहुत महत्त्व रखती है कि आप किसके साथ गाढ़ सम्बन्ध बनाये रखते हैं। आप में भले ही आज वैसे गुण नहीं हैं, परन्तु गुणवानों का संपर्क कायम करने से एक दिन आप भी गुणवान् बनेंगे ही। For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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