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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० प्रवचन-५३ __ आचार्यदेव सुहस्ति संप्रति के महल में पधारे | संप्रति ने गुरूदेव के चरणों में बड़े प्रेम से, बड़ी श्रद्धा से वंदना की और कहा : ___ 'गुरूदेव, आपकी ही परम कृपा से मैं राजा बना हूँ। यह राज्य मुझे मिला है। अन्यथा मैं एक भिखारी....दर दर भटकता फिर रहा था । कहीं से भी रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं मिल रहा था....और आपने मुझे दीक्षा दी, भोजन कराया, बड़े वात्सल्य से मुझे अपना बना लिया था... प्रभो! जब रात्रि के समय मेरे प्राण निकल रहे थे तब मेरे पास बैठकर आपने मुझे नमस्कार महामंत्र सुनाया था, मेरी समता और समाधि को टिकाने के लिए आपने भरसक प्रयत्न किया था.... गुरुदेव, मेरी समाधिमृत्यु हुई और मैं इस राजपरिवार में जन्मा! आपकी ही कृपा का यह फल है। __'गुरुदेव, यह राज्य मैं आपके चरणों में समर्पित करता हूँ, आप इसका स्वीकार कर मेरे पर अनुग्रह करें।' सम्राट संप्रति का यह था कृतज्ञता गुण! पूर्वजन्म में जिनका उपकार था, उन उपकारी के प्रति संप्रति का हृदय श्रद्धा और भक्ति से भरपूर हो गया था। अपना पूरा साम्राज्य गुरू के चरणों में समर्पित करने को तत्पर बन गया था। गुरूदेव आर्य सुहस्ति ने संप्रति को कहा : 'महानुभाव, यह तेरी उत्तमता है कि तू तेरा संपूर्ण राज्य मुझे समर्पित करने को तत्पर बना है, परन्तु मैं राज्य नहीं ले सकता हूँ | जैनमुनि अकिंचन होते हैं। सभा में से : संप्रति ने पूर्वजन्म में दीक्षा ली थी, तो उसको पता होगा न, कि जैन साधु वैभव-संपत्ति नहीं रख सकते हैं। ___ महाराजश्री : आपको पता नहीं है कि उसने कब और कैसी हालत में दीक्षा ली थी! और कितने समय दीक्षा का पालन किया था । जानते हो क्या? मध्याह्न के समय साधु गौचरी लेने निकले थे। गौचरी लेकर जब लौट रहे थे तब एक भिक्षुक मिला, उसने साधुओं से कहा : 'आपके पास भिक्षा है तो मुझे थोड़ा-सा भोजन दीजिए....मैं भूखा हूँ, भूख से मर रहा हूँ।' उस समय साधुओं ने उसका तिरस्कार नहीं किया, परन्तु वात्सल्य से कहा : 'भैया, हम तुझे इस भिक्षा में से कुछ नहीं दे सकते, क्योंकि इस भिक्षा पर अधिकार होता है गुरुदेव का । तू चल हमारे गुरूदेव के पास, यदि उनको तू प्रार्थना करेगा और उनको उचित लगेगा तो वे तुझे खाना देंगे।' ___ साधुओं के सरल और वात्सल्यपूर्ण वचनों पर भिखारी को विश्वास हुआ। वह साधुओं के पीछे पीछे चला | उपाश्रय में आया । साधुओं ने गुरूदेव आचार्य For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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