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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२ प्रवचन-५२ सुरक्षा के लिए समर्थ का आश्रय लो : यह तो ठीक था कि राजा सरल हृदय का था इसलिए पुत्रवधू की बात का अर्थ सीधा लिया । अन्यथा अनर्थ कर दे। राजाओं में धार्मिकता है या नहीं, यदि है तो उसकी किस धर्म में श्रद्धा है, यह देखना आवश्यक था, राजाशाही के जमाने में। दूसरी बात देखने की होती थी शुद्ध व्यवहार की, शुद्ध कुलाचारों की। आश्रय अच्छा हो तो आश्रित सलामत! तीसरी बात देखने की होती थी प्रताप की, प्रभाव की, पराक्रम की। राजा पराक्रमी हो तो ही प्रजा की, शत्रुओं से रक्षा कर सके। यदि पराक्रमी नहीं हो तो प्रजा की सुरक्षा नहीं कर सके, प्रजा का विनाश हो जायं । प्रजा की संपत्ति का विनाश हो जायं । प्रजा को वैसे राजा का आश्रय लेना चाहिए कि जो उसकी रक्षा करने में समर्थ हो, यह है गृहस्थ का सामान्य धर्म । ऐसा आश्रय लेना कि जो आश्रित की अच्छी तरह रक्षा कर सके। गृहस्थ-जीवन में आश्रय बड़ा महत्त्व रखता है। संपत्ति-विपत्ति का आधार होता है आश्रय । आश्रयभूत राजा वगैरह जिस प्रकार धार्मिक होने चाहिए, शुद्ध कुलाचार वाले होने चाहिए, पराक्रमी होने चाहिए, वैसे न्यायी भी होने चाहिए। बिना पक्षपात के, राजा वगैरह न्याय करनेवाले होने चाहिए। अन्यायी राजा का राज्य छोड़ देना चाहिए। सभा में से : वर्तमानकाल में जो सत्ताधीश बनते हैं उनमें तो ये सारी बातें दिखती ही नहीं! कहाँ है धार्मिकता? कहाँ है न्याय? महाराजश्री : मैंने आपको पहले ही बताया कि जब से राजाओं के राज्य गये, राज्य व्यवस्था ही बदल गई, तब से यह बात देखने को ही नहीं रहीं। आज भारत एक सार्वभौम साम्राज्य है। केन्द्र सरकार के नियम सारे भारत पर शासन करते हैं। भारतीय संविधान के विरूद्ध कोई राज्य भी नियम नहीं बना सकता । 'स्वयोग्य आश्रय' की खोज करने की आज जरूरत रही नहीं है! यदि भारत में आप सुरक्षित नहीं हैं तो भी आप कहाँ जाओगे? तो भी कुछ बुद्धिमान् लोग अपनी संपत्ति की सुरक्षा के उपाय ढूँढ़ निकालते हैं। सभा में से : विदेश की बैंकों में रुपये जमा करा लेते हैं! महाराजश्री : और विदेश में जाकर बस भी जाते हैं न? जिस व्यक्ति का ध्येय धर्मपुरुषार्थ नहीं होता है वे लोग ईरान-इराक और मिस्र जैसे इस्लामिक For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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