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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५२ ४१ 'महाराजा, पहले आप मुझे और हमारे सारे परिवार को अभयदान देने की कृपा करें, बाद में मैं कुछ भी कहूँगी,' पुत्रवधू ने कहा। राजा ने तुरन्त ही कहा : 'अभयदान है तुम सबको। कहो, जो कहना चाहती हो।' अब पुत्रवधू निर्भय हो गई और बोली : 'महाराजा, यह दूध का प्याला आपके लिए है, क्योंकि छोटे बच्चे को दूध पिलाया जाता है, तब जाकर उसकी बुद्धि विकसित होती है! और...' राजा बीच में ही चिल्लाया : 'तू मुझे छोटा बच्चा मानती है क्या? और मेरी बुद्धि को अविकसित कहती है क्या?' जरा भी घबराये बिना छोटी बहू ने कहा : 'महाराजा, यदि आप छोटे बच्चे जैसे नहीं होते तो इस मंत्री की सिखायी हुई बातें आप नहीं सीखते! आपकी बुद्धि निर्मल और विकसित होती तो आप अपने मित्र की संपत्ति हड़पने का विचार नहीं करते!' राजा ने पूछा : 'परन्तु मंत्री के सामने घास क्यों रखा?' पुत्रवधू ने तुरन्त जवाब दिया : 'क्योंकि वह बैल जैसा है। बैल नहीं होता, बैल जैसी बुद्धि नहीं होती तो क्या वह आपको ऐसी गलत राय देता क्या? मित्रद्रोह का पाप करने में सहायता करता क्या? मंत्री तो ऐसा होना चाहिए कि कभी राजा अपने कर्तव्यमार्ग से विचलित होता हो तो उस समय सच्ची राय दें। अपनी नौकरी की भी चिन्ता नहीं करे।' __ सारी राजसभा में सन्नाटा छा गया | मंत्री के मुँह पर तो काले बादल छा गये थे। सेठ भय, हर्ष, चिन्ता आदि की मिश्र भावना से भरे जा रहे थे। राजा स्वस्थ था, प्रसन्न था। सभाजन पुत्रवधू की बातें सुनकर हर्ष से स्तब्ध थे। ऐसी खरी-खरी बातें सुनानेवाला व्यक्ति राजसभा में पहला पहला आया था। और वह भी एक लड़की! राजा ने कहा : 'बेटी, मेरे दो प्रश्नों के उत्तर तू देनेवाली है क्या?' 'जी हाँ, आपके पहले प्रश्न का उत्तर : निरन्तर बढ़नेवाला तत्त्व है तृष्णा! सही उत्तर है? पूछ लो आपके महामंत्रीजी को! दूसरे प्रश्न का उत्तर है : निरन्तर घटनेवाला तत्त्व है आयुष्य! सही उत्तर है? यह भी पूछ लो महामंत्रीजी को!' राजा ने कहा : 'बेटी, तेरे दोनों उत्तर सही हैं। और जो कुछ तूने मेरे लिए और मंत्री के विषय में कहा, वह भी सही है। मैं अभी ही मंत्रीपद से उसको हटा देता हूँ और घोषणा करता हूँ कि भविष्य में कभी भी मैं प्रजा का धन लेने का प्रयत्न नहीं करूँगा।' For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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