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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ प्रवचन-५२ किया जाता था (१) धर्म, (२) कुलाचार शुद्धि, (३) प्रताप और (४) न्याय। राजाओं के काल में, राजा किसी विशेष धर्म का पालन करते थे। कोई राजा जैन धर्म का पालन करता था तो कोई राजा जैन धर्म का पालन करता था तो कोई राजा वैदिक धर्म का पालन करता था। कोई राजा बौद्ध धर्म का पालन करता था तो कोई राजा इस्लाम का । ज्यादातर राजा धर्मान्ध होते थे, इसलिए वह स्वयं जिस धर्म का पालन करता था, उसी धर्म का पालन करने का प्रजा के लिये अनिवार्य बन जाता था। उस धर्म का पालन करने के लिए प्रजा पर दबाव डालता था। कुछ राजा परधर्मसहिष्णु भी होते थे। प्रजा को जिस धर्म का पालन करना हो, कर सकती थी। राजा का कोई आग्रह नहीं होता था। ऐसे राजा के राज्य में रहना, उपद्रवरहित होता था। राजा यदि अपने धर्म का आग्रही हो और आप उस धर्म का स्वीकार करना नहीं चाहते हो, आप अपने ही धर्म का पालन करना चाहते हो, तो आपको उस राज्य का त्याग कर वैसे राज्य में जाना चाहिए कि जहाँ राजा सभी धर्मों के प्रति समदृष्टिवाला हो अथवा आप जिस धर्म का पालन करते हो उसी धर्म की मान्यता उस राजा की हो, वही पर जाना चाहिए | तो ही आप निर्भयता से धर्म-आराधना कर सकोगे। अशुद्ध कुलाचारों को त्यागना चाहिए : इस दृष्टि से वर्तमानकाल की राज्य-व्यवस्था बहुत ही अच्छी है। भारत के संविधान में सभी धर्मों को मान्यता दी गई है। जिस मनुष्य को जिस धर्म का पालन करना हो, कर सकता है। अपने अपने धर्म का प्रसार-प्रचार भी कर सकता है। अपने धर्म की विचारधारा को अभिव्यक्त कर सकता है। भारत के किसी भी राज्य में, प्रदेश में किसी भी धर्म का प्रचारक जा सकता है और प्रजा के सामने अपने धर्म की मान्यताओं को प्रस्तुत कर सकता है। धर्मगुरुओं का भी परस्पर झगड़ा नहीं रहा। धर्म को लेकर जो युद्ध होते थे वे भी नहीं होते। राजाओं के कुलाचार देखे जाते थे। कुलाचार शुद्ध है या अशुद्ध, वह देखा जाता था। यदि अशुद्ध कुलाचार देखे जाते तो उस राजा की शरण छोड़ दी जाती थी। वैसे राजा की शरण नहीं ली जाती थी। ऐसे भी राजा होते थे कि जिनके राज्य में माताएँ और बहनें सलामत नहीं रहती थीं। कोई रूपवती स्त्री को राजा देखता, उसको यदि पसंद आ जाती तो सैनिकों को भेजकर बुला लेता और बलात्कार करता! अथवा अपनी रानी बना लेता! यह हुआ अशुद्ध For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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