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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५२ ३५ मिलाना', 'औद्योगिक प्रगति....' इत्यादि मायाजाल में बेचारा मनुष्य ही खो गया है। देश की प्रगति करते-करते मनुष्य की अधोगति हो गई। राष्ट्र का विकास करते-करते मानवता का विनाश हो गया। दुनिया के साथ कदम मिलाने में पारिवारिक सुख ही खो बैठे। औद्योगिक प्रगति की मृगतृष्णा में लाखों गाँवों की बेहाली कर दी। यदि यह पागलपन पाँच-दस वर्ष और चला तो भयानक विनाश हो सकता है। क्रान्ति की शुरूआत अपने घर से करें : __ कोई बात नहीं, आप लोग चिन्ता नहीं करें। देशव्यापी क्रान्ति नहीं कर सकते, तो चिन्ता नहीं, गृहव्यापी क्रान्ति तो कर सकते हो न? अपने अपने परिवार में तो इन ३५ सामान्य धर्मों को स्थान दे सकते हो न? __ क्रान्ति-परिवर्तन करने के लिए मनुष्य में सत्त्व चाहिए, साहस चाहिए! क्रान्ति के दौरान कुछ विघ्न भी आ सकते हैं, कुछ दुःख आ सकते हैं....वह सब सहन करने का होता है, उसको कुचलने का होता है। दृढ़ निर्धार, दृढ़ संकल्प होने पर यह मुश्किल नहीं है। स्वजीवन और पारिवारिक जीवन में परिवर्तन लाने का दृढ़ संकल्प कर लो। 'प्लानिंग'-आयोजन बना लो। इसलिए ऐसे विश्वसनीय समर्थ पुरुष का मार्गदर्शन लेते रहो। उनके चरणों में जीवन समर्पित कर दो। आज यही बात करना है। सातवाँ सामान्य धर्म यही है : 'स्वयोग्यस्य आश्रयणम्! अपने योग्य व्यक्ति का आश्रय लेना, शरण लेना। ऐसे व्यक्ति का आश्रय लेना कि जो आपकी रक्षा कर सके! जो आपको समुचित मार्गदर्शन दे सके। वास्तव में तो यह सामान्य धर्म उस समय बताया गया है कि जिस समय भारत में राजाओं के राज्य थे। राजाओं के राज्य में बहुत संभलकर जीना पड़ता था। जो सुज्ञ, बुद्धिमान् और महत्त्वाकांक्षी लोग होते थे वे सोचसमझकर राज्याश्रय पसंद करते थे। कोई अनिवार्य नहीं था कि जिस राज्य में जन्मे, वहीं पर जीवन व्यतीत करना पड़े। जन्म हुआ हो एक राज्य में, जीवन बीते दूसरे राज्य में और मौत आये तीसरे राज्य में | ऐसा भी हो सकता था। बात इतनी ही थी कि, जिस राज्य में धर्म, अर्थ और काम - ये तीन पुरुषार्थ करने में निर्भयता बनी रहे, विशेष संपत्ति की प्राप्ति हो सके और अवसर आने पर सच्चा न्याय मिले, वही रहना चाहिए। किस राजा के राज्य में रहना, इस बात का निर्णय चार बातों को लेकर For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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