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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७२ २५२ रसनेन्द्रिय की परवशता के अनेक नुकसान हैं - यह जानकर क्या आप, थोड़ा भी संयम नहीं रख सकते? आप लोग तो कभी-कभी उपवास भी कर लेते हैं, कभी-कभी आयंबिल भी कर लेते हैं, कभी-कभी एकासन भी करते हैं....! आप लोगों के लिए प्रकृति-विरुद्ध आहार का त्याग करना सरल हो सकता है। आप लोगों की एक कमजोरी मैं जानता हूँ। आप ऐसे लोगों के साथ संबंध रखते हैं, कि जिनको मात्र अर्थपुरुषार्थ और कामपुरुषार्थ में ही रस है। जिनको धर्म से या आत्मा से कोई लगाव नहीं है। संग वैसा रंग! वे लोग खाने-पीने में कोई विधि-निषेध समझते नहीं हैं। आप लोग या तो उनका अन्ध अनुकरण करते हो, अथवा उनके कहने में आ जाते हो। देखा-देखी काफी चली है न? होटल का चस्का सबको लगा है : एक भाई ने मुझे कहा था : 'मेरे घर में इसलिए झगड़ा होता है कि मैं उनको भोजन के लिए होटल में नहीं ले जाता हूँ। पत्नी कहती है : 'पड़ोसवाले प्रति सप्ताह एक दिन शाम का भोजन होटल में करते हैं....अपन को भी वैसे एक दिन शाम का भोजन होटल में करना चाहिए।' मैं मना करता हूँ। होटल का भोजन किसी भी दृष्टि से अच्छा नहीं है-मैं समझता हूँ, परन्तु वह नहीं मानती है....। हाँ, अब शायद मान जायेगी। मैंने पूछा : 'अब क्यों मान जायेगी?' उसने कहा : 'हमारा वह पड़ोसी बीमार हो गया है, उसकी एक 'किडनी' फेल हो गई है। दूसरी किडनी भी ठीक रूप से काम नहीं करती है, हजारों रूपये खर्च हो रहे हैं। घर में रूपये हैं नहीं....| यह सारी बात मेरी पत्नी जानती है....इसलिए अब शायद वह होटल में जाने का नाम नहीं लेगी। __ होटलों का स्वादिष्ट परन्तु अभक्ष्य भोजन, मनुष्य के स्वास्थ्य को नष्ट कर देता है - यह बात अब व्यापक बनी है। फिर भी अज्ञानी और जड़ मनुष्य, यदि उसके पास पैसे हो गये हैं, तो वह होटल में जाता ही रहेगा। ___ सभा में से : घर के भोजन से होटल का भोजन ज्यादा स्वादिष्ट क्यों लगता है? स्वादिष्ट रसोई का राज : महाराजश्री : यह बात भी बता दूं। एक बड़ी होटल में रसोई करनेवाला रसोइया, एक श्रीमन्त घर में रसोई करने के लिए आया। दो-तीन महीना उसने रसोई की। घर में चार-पाँच लड़के-लड़कियों को उसकी रसोई बहुत For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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