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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-७२ २५३ अच्छी लगी। परन्तु रसोइया चला गया। लड़कों को अब घर की रसोई नहीं भाती है। उन्होंने अपने पिता को आग्रह किया कि उस रसोइये को वापिस बुला लें। हालाँकि लड़कों की माँ अच्छी रसोई बनाती थी, परन्तु वैसा स्वाद नहीं आता था, जैसा स्वाद उस रसोइया की रसोई में आता था। ___ रसोइया वापस आ गया। एक दिन सेठ ने उससे पूछा : 'तेरी रसोई में ऐसा कौन-सा जादू है कि तेरी रसोई इतनी स्वादिष्ट लगती है?' रसोइये ने कहा : ‘सेठ साहब, आप नाराज न हों तो मैं उसका रहस्य बता सकता हूँ| परन्तु रहस्य जानने के बाद आप मुझे छुट्टी दे देंगे....!' सेठ ने बहुत आग्रह किया तब रसोइये ने कहा : 'मैं रसोई बनाने के लिए पानी मेरे घर से ले आता हूँ। वह पानी दूसरे ढंग का होता है। हमारे मकान के ऊपर जो पानी की टंकी है, उस टंकी में ऊँट की हड्डियाँ डाली जाती हैं । २४ घंटे वे हड्डियाँ उस टंकी में रहती हैं.... फिर वह पानी रसोई के काम में ले लेते हैं। उस पानी से बनी रसोई में बढ़िया स्वाद आता है। अधिकांश चीनी होटलों में ऐसा पानी रसोई में काम लिया जाता है।' सेठ तो रसोइये की बात सुनकर स्तब्ध रह गये। उन्होंने रसोइये को कहा : 'भाई, तू मेरे घर में वैसा पानी मत लाना, शुद्ध पानी से ही रसोई बनाया कर | हमें वैसा स्वाद नहीं करना है....।' होटलों के भोजन की प्रशंसा करनेवाले आप लोग, कुछ समझेंगे क्या? छोड़ देंगे होटलों में जाना? शान्ति से घर में ही भोजन करें, प्रकृति के अनुकूल भोजन करें एवं जब क्षुधा का अनुभव हो, तब भोजन करें। भोजन के विषय में और भी बातें करनी हैं, परन्तु अभी नहीं। आज बस, इतना ही। For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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